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सावधान ! इन नास्तिकवादों से : २५ देह को बीज मानने वाले कुछ दार्शनिक ऐसा भी मानते हैं कि जसा बीज होगा, वैसा ही फल होगा, यह ध्र व सिद्धान्त है। इसके अनुसार स्त्री मरकर स्त्री होती है, और पुरुष मरकर पुरुष होता है। पंचम गणधर श्री सुधर्मा स्वामी का भगवान् महावीर के परिचय में आने से पहले इसी मान्यता में विश्वास था। भगवान् महावीर ने उनका मन:समाधान करते हुए कहा था- यह ठीक है कि जैसा बीज होगा, वैसा ही फल होगा। किन्तु बीज की व्याख्या में अन्तर है । स्थूलदेह बीज नहीं है। बीज हैं-देह में (कार्मण शरीर में रहे हुए आत्मा के शुभाशुभ अध्यवसाय । वे ही बीज हैं और उन्हीं के अनुसार आत्मा अगला जन्म पाता है।
__ जिस प्रकार बिना जले हुए बीजों से दूसरे अंकुर फूट निकलते हैं,उसी प्रकार सूक्ष्म (तैजस कार्मण) शरीर के नहीं जलने से दूसरे शरीर की उत्पत्ति सम्भव है। अतः तप-संयम के द्वारा सूक्ष्म शरीर को जला डालने पर मोक्ष हो जाता है, तभी दूसरे शरीर की उत्पत्ति बन्द हो सकती है, अन्यथा नहीं; स्थूल आग उस सूक्ष्म शरीर (तैजस कार्मण) को जला भी नहीं सकती। अतः सूक्ष्म शरीर ही अन्य शरीर की उत्पत्ति का कारण है । सम्यग्दृष्टि साधक को इन नास्तिकवादों से दूर रहकर आस्तिकवाद के महापथ पर चलना चाहिए।