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सावधान ! इन नास्तिकवादों से २१
रहता है। ये शास्त्र मेरे हैं, यह कहकर दूसरे की करुणा को नष्ट करने वाली बात कहता है, वह स्तेनोत्कट कहलाता है।
दूसरे के स्वामित्व की या दूसरे के द्वारा कथित, निर्मित, आविष्कृत या लिखित वस्तु का अपहरण करना चोरी है, स्तेनवृत्ति है। चोरी केवल वस्तु की ही नहीं, विचारों की भी होती है। दूसरे के द्वारा प्ररूपित विचारों, सिद्धान्तों तथा साहित्य को अपने नाम से प्रचारित करना स्तेनवृत्ति है। दूसरे के विचारों को तोड़-मरोड़ कर रखना, आशय बदलना, उसके वचनों का गलत आशय निकालना भी चोरी है।
____ कुछ देहात्मवादी व्यक्ति दूसरे के सिद्धान्तों, विचारों और गाथाओं को विकृतरूप में लेकर अपने मत की पुष्टि करते हैं, अथवा दूसरे की विचारधारा को गलत रूप में लेकर अपनी विचारधारा की पुष्टि करते हैं। यह भी भोली जनता को भुलावे में डालने के तरीके हैं । ऐसी स्तेनवृत्ति स्तेनोत्कटवाद है।
उदाहरण के तौर पर-जनदर्शन आत्मा को कथंचित् नित्य और कथंचित् अनित्य दोनों रूपों में मानता है. किन्तु जो कथंचित् अनित्य को छोड़कर एकान्त रूप से यही कह देते हैं कि जैनदर्शन की तरह हम भी आत्मा को नित्य मानते हैं । जबकि जैनदर्शन आत्मा को कूटस्थनित्य नहीं मानता, वह परिणामीनित्य मानता है। साथ हो जैनदर्शन आत्मा को विभिन्न गतियों-योनियों में जाने के कारण कथंचित् अनित्य भी मानता है. उस बात को वे लोग छोड़ देते हैं । अथवा बौद्धदर्शन आत्मा को एकान्त अनित्य मानता है, उनका क्षणिकवाद 'जगत् के सभी पदार्थों को क्षणिक होने से अनित्य कहता है'।1 उसके समर्थन में जनदर्शन के आत्मा की कथंचित् अनित्यता को एकान्तरूप में प्रस्तुत करता है।
जिन शास्त्रों, विचारों या सिद्धान्तों से दूसरे के हृदय से करुणा या श्रद्धा के भाव समाप्त हो जाते हैं, हृदय से कोमलता के अकुर मिट जाते हैं, उन शास्त्रो, विचारों आदि को अपने कहना, अथवा अपने देहात्मवाद के मिथ्या सिद्धान्त को सत्य सिद्ध करने के लिए करुणाशील महापुरुषों के सापेक्ष वचनों को एकान्त रूप से उद्धृत करना या उनका उपयोग करना स्तेनोत्कट है । कहावत है-शैतान भो अपना मतलब सिद्ध करने के लिए शास्त्रों की दुहाई देता है। साथ ही ऐसा देहात्मवाद दूसरों के हृदय से कोमलता के अंकुरों को उखाड़ डालता है, क्योंकि आत्मा के अस्तित्व को मानने पर ही अहिंसा और धर्म का अस्तित्व है । १. 'सर्वमनित्यं क्षणिकत्वात्'---बौद्धदर्शन