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२० अमरदीप
इस प्रकार के उत्कटवाद के मानने से प्रवाहरूप से अनादि-अनन्त संसार का उच्छेद हो जाता है, जो कि प्रत्यक्षतः विरुद्ध है।
उत्कटवादियों से पूछा जाए कि तुम्हारे कथनानुसार पंच महाभूत हैं, तभी तक जीवन है; तो बताइये, मृत-शरीर में पंच महाभूतों में से कौन-सा महाभूत चला गया ? इसमें शरीर के रूप में पृथ्वीतत्व भी है। यह देहपिण्ड पृथ्वी का ही तो है। इसमें वायुतत्त्व भी है । यदि कहो कि प्राणवायु निकल गया है, तो मशीन से ऑक्सिजन भर लीजिए अथवा पम्प से हवा भर लीजिए, फिर तो वायु काफी हो जायेगी। यदि कहें कि तेजतत्त्व का अभाव है, तो बिजली का करंट छोड़ दीजिए । तेज तत्त्व आ जायेगा। आकाश तत्त्व का अवकाश मृत शरीर में मौजूद है ही। जलतत्त्व भी मौजूद है। परन्तु मृत शरीर में से चेतना निकल जाने के बाद आप कितना ही प्राणवायु दें, बिजली के करंट द्वारा अग्नि तत्त्व दें, तथा जल आदि अन्य तत्त्वों का भी चाहे उसमें सद्भाव हो, फिर भी वह शरीर न तो बोलेगा, न चलेगा, न खायेगा-पीयेगा ही। यानी जिन्दा प्राणी के समान जीवन की कोई भी क्रिया नहीं कर सकेगा। दूसरे शब्दों में कहें तो पंच-महाभूतों का समूह होते हुए भी मृत शरीर में जीवन की कोई भी क्रिया नहीं होती। अन्त में निरुपाय होकर आप कहेंगे कि मृत शरीर में से सूक्ष्म प्राणवायु चला गया। जो कि समस्त जीवन-शक्ति का केन्द्र था; किन्तु आप जिसे अदृष्ट सूक्ष्म प्राण. वायु कहते हैं, वही हमारी दृष्टि से अतीन्द्रिय आत्मा है, जिसके अभाव में जीवन की सारी हलचल बन्द हो जाती है । इस प्रकार रज्जूत्कटवादियों का देहात्मवाद उपर्युक्त तर्कों से खण्डित हो जाने एवं सूर्य के उजेले की तरह स्पष्टतः सत्य उजागर होने पर भी वे इसे स्वीकार नहीं करते और सत्य का अपलाप करते हैं। स्तेनोत्कटवाद : एक अनुशीलन
अब तीसरा देहात्मवाद है- स्तेनोत्कटवाद । इनके सम्बन्ध में अर्हत ऋषि कहते हैं
प्रश्न-से कि तं तेणुक्कले ?'
उत्तर--"तेणुक्कले णाम जे णं अण्ण-सत्थ-दिट्ठन्त-गाहेहिं सपक्खुब्भावणाणिरए 'मअ ते एतमिति' पर-करुणच्छेदं कदति । से तं तेणुक्कले।"
अर्थात्-(प्रश्न है-) 'भगवन् ! स्तेनोत्कट किसे कहते हैं ?'
(उत्तर है-) स्तेनोत्कट उसे कहते हैं, जो अन्य शास्त्रों की दृष्टान्त गाथाओं से उद्धृत करके अपने पक्ष की उद्भावना (सिद्धि करने) में रत