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सावधान ! इन नास्तिकवादों से | १६
चिता में भस्म हो जाती है । उससे परे दूसरा कोई तत्त्व नहीं है, इस बात को मानने पर कर्मवाद का भी उच्छेद हो जाता है । यहाँ पर जीव जो भी शुभाशुभ कर्म करता है, उसका फल कब और कैसे मिलेगा ? कर्मवाद को न मानने पर पुण्य-पाप का फल, तथा महाव्रत, समिति - गुप्ति, श्रमणधर्म, सामायिक, प्रतिक्रमण, धर्माचरण आदि सभी साधनाएँ व्यर्थ हो जाएँगी । पापी को भी पाप करने की खुली छूट मिल जाएगी और धर्मी भी फिर धर्म करने के लिए उत्साहित नहीं होगा । नैतिकता के सभी नियम ताक पर रख दिये जायेगे । फिर तो किसी भी प्रकार की साधना का कोई मूल्य नहीं होगा । सभी मनमानी करने लग जाएँगे। जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत चरितार्थ हो जायेगी |
रज्जु - उत्कटवाद : एक चिन्तन
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अब दूसरे रज्जु-उत्कटवाद को लीजिए उकवाद का भाई है । एक नागनाथ है तो उत्कट के विषय में अर्हत-ऋषि कहते हैं
प्रश्न-से कि तं रुज्जुक्कले ?
उत्तर -
- रज्जुक्कले णामं जेणं रज्जु-दिट्ठ तेणं समुदयमेत्त-पण्णवणा पंच मह भूखण्डमेsभिधाणा इं, संसार-संसती-वोच्छेयं वदति । से तं रज्जुक्कलं ॥२॥
रज्जु - उत्कटवाद भी दण्डदूसरा सांपनाथ है । रज्जु
अर्थात् - ( प्रश्न यह है —- ) 'रज्जु - उत्कट क्या है ?"
उत्तर – ‘रज्जूत्कट (रज्जूत्कल) वह है, जो रज्जु (रस्सी) के दृष्टान्त से ( पंचमहाभूतात्मक ) समुदयमात्र की प्ररूपणा करता है । यह जीवन पंचमहाभूतों के स्कन्ध का समूहमात्र है । इस प्रकार जो संसार परम्परा (संसृति) का उच्छेद करता है, वह रज्जूत्कट है ।'
रज्जूत्कवादी देहात्मवाद के प्रतिपादन के लिए रज्जु (रस्सी का दृष्टान्त दिया करते हैं। उनका कहना है कि जैसे रस्सी एक प्रकार से विभिन्न डोरों का समूह है । इसके सिवाय रस्सी का अस्तित्व ही कहाँ है ? इसी प्रकार जीवन क्या है ? पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश, इन पचमहाभूतों का समुदय (समूह) ही जीवन है । जब तक ये समूहरूप में इकट्ठे हैं, तभी तक जीवन है । इस पचभूत समूह के अतिरिक्त जीवन है ही कहाँ ? जिस प्रकार घड़ी के छोटे-बड़े सभी पुर्जे मिलकर ही घड़ी कहलाती है । ये पुर्जे मिलते हैं, तभी कहा जाता है कि घड़ी चलती है । यदि उसमें से एक नन्हीं सी कील भी निकल जाए तो घड़ी चल नहीं पाती, वह बन्द हो जाती है । यही बात उत्कवादी कहते हैं ।