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सावधान ! इन नास्तिकवादों
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प्रकट होती है । इसी से इन्द्रियाँ और मन अपने-अपने विषयों में प्रवृत्त होते हैं । अंगोपांगों में हलचल इसी से होती है। जब इन पांच भूतों में से एक भी भूत बिखर जाता है, चला जाता है; तो शरीर नष्ट हो जाता है । शरीर के नष्ट होने के साथ-साथ इन्द्रियों आदि की हलचल समाप्त हो जाती है ।
देहात्मवाद का उद्देश्य और प्ररूपण
जब उनसे पूछा जाता है कि शरीर के नष्ट होने के बाद आत्मा कहाँ जाता है ? इस जीव ने जो कुछ अच्छा या बुरा कर्म किया है, उसका फल वह कहाँ भोगेगा
इसके उत्तर में चार्वाकदर्शन स्पष्ट करता है
यावज्जीवेत् सुखं जीवेत्, ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् । भस्मीभूतस्य देहस्य, पुनरागमनं कुतः ।।
'जब तक यह पंचभूतात्मक जीवन है, तब तक सुख से जीओ और कर्ज करके भी घी पीओ । देह के भस्म हो जाने के बाद फिर न कहीं आना है, न जाना है । बस, यहीं पर सब खेल खत्म है । '
इन नास्तिकों के कथन का तात्पर्य है कि देह को जला डालने के बाद जब पंचमहाभूत समाप्त हो जाते हैं या बिखर जाते हैं तब यहीं पर सब कुछ नष्ट हो जाता है। इसके आगे किसे कहाँ जाना है ? इस पहेली को आज तक कोई सुलझा नहीं पाया ।
राजा प्रदेशी भी जब नास्तिक था, तब उसने केशीश्रमण मुनि से यही कहा था कि मेरे दादा दादी, प्रपितामह आदि सब यहाँ से गये, किन्तु उनमें से कोई भी लौटकर यहाँ नहीं आया । अगर मैं गलत रास्ते पर था, तो मुझे मेरे पूर्वजों में से कोई समझाने तो आता । परन्तु आज तक कोई मुझे समझाने-बुझाने नहीं आया ।
इसी तरह नास्तिकवादी कहते हैं- शास्त्रों के नाम से जो 'कुछ लिख दिया, स्वर्ग के सब्जबाग दिखाये गए हैं, वे सब रंगीन कल्पना के महल हैं । स्वप्न के सुनहरे महलों से अधिक उनमें सच्चाई नहीं है । ताश के हवाई किले से अधिक स्थिरता नहीं । तुम इस चक्कर में मत पड़ो कि मरने के बाद क्या होगा ? कहाँ जाना पड़ेगा ? अच्छे-बुरे कर्मों का फल भोगना पड़ेगा या नहीं ? यह चिन्ता हो छोड़ो। इस शरीर के रहते ही खाओ, पीओ और मौज करो । *
* 'Eat, drink and be merry'.