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सावधान ! इन नास्तिकवादों से | १५ उसका मृत पुत्र तो प्रत्यक्ष है नहीं । केवल पत्नी के पत्र के आधार पर परोक्ष घटित बात को क्यों वह मान लेता है ? यहाँ आकर प्रत्यक्षवादियों तर्क हार जाती है ।
एक बार एक सन्त के पास एक नास्तिक आया, बोला-आप कहते हैं भगवान पार्श्वनाथ हुए, महावीर हुए और बड़े-बड़े महापुरुष हुए । क्या आप किसी को देखा है ?
सन्त ने कहा- देखा तो नहीं, पर सुना है; शास्त्र भी कहते हैं । नास्तिक बोला - मैं शास्त्र - वास्त्र को नहीं मानता, जो बात आँख से देखी नहीं जायगी, उसे हम सच कैसे मानें ?
सन्त
ने पूछा - तेरे दादा का क्या नाम था ? परदादा कौन थे ? नास्तिक ने नाम बताये, अमुक अमुक !
सन्त बोले क्या तुमने अपने परदादा को देखा है ? नहीं ।
तो फिर हम कैसे मानें कि तेरे परदादा हुए हैं, तेरी दादी हुई है या तू किसकी सन्तान है ? क्या तुमने अपने आपको जन्म लेते हुए देखा है ? तेरे माँ-बाप कौन है तुझे क्या पता ? किस प्रमाण से तू यह कह सकता है कि तेरे बाप अमुक थे ?
नास्तिक सकपकाया और बोला -- यह तो सब दुनियां जानती है । पास-पड़ोस वाले रिश्तेदार सभी बताते हैं ।
सन्त - तो फिर हमारे भी गुरु, गुरु के गुरु यों सैकड़ों पीढ़ियों से यह सब एक दूसरे अपने शिष्य के बताते आये हैं । फिर हम उनकी बात पर विश्वास क्यों नहीं करें ?
आत्मा के सम्बन्ध में भी यही बात है । आत्मा इन्द्रियों से अगोचर है, वह प्रत्यक्ष तो दिखाई नहीं दे आगम आदि प्रमाणों से आत्मा सिद्ध होती है अतः जब अनुमान या आप्तपुरुष द्वारा कही गई बातों के आधार से आत्मा को अनुमान, आगम आदि प्रमाणों से मानने में क्या
अमूर्त है, अरूपी है, सकती; अनुमान, दूसरी बातों को मानते हो तो आपत्ति है ?
धर्म-अधर्म, शुभाशुभ कर्म, स्वर्ग-नरक आदि परलोक, धर्मक्रिया आदि सभी बातों का अपलाप करने से भी वह उत्कल है, अर्थात् - धर्मापापी अपहरणकर्ता है। इसलिए उत्कलवाद अथवा उत्कटवाद का एक अर्थ यह भी है कि जो धर्म, कर्म आदि का अपलाप करे ।