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सावधान ! इन नास्तिकवादों से
देहात्मवाद : कब और क्यों ?
धर्मप्रेमी श्रोताजनो ! मानव जब प्रथम बार आँखें खोलता है, तब उसके समक्ष शरीर ही प्रत्यक्ष होता है । वह माँ के उदर से निकलता है तो शरीर के रूप में । आत्मा नाम की कोई भी चीज उसे प्रत्यक्ष नहीं दीखती । जब कुछ बड़ा होता है, समझदार होता है, तब भी उसकी दृष्टि में शरीर ही होता है, आत्मा नहीं । इस प्रकार शरीर के निरन्तर सम्पर्क के कारण मानव शरीर को ही सर्वस्व समझ बंठा है । संसार में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो यह मान बैठे हैं कि शरीर के सिवाय आत्मा नाम की कोई चीज नहीं है । इसके विषय में वे कई तर्क उपस्थित करते हैं कि आत्मा नाम की कोई वस्तु अलग होती तो बचपन, यौवन और बुढ़ापे में कभी तो दीखती । अतः यह सिद्ध है कि शरीर के भस्म होते ही यहीं खेल खत्म हो जाता है । ऐसे व्यक्तियों की स्थूल आँखें कह उठीं- 'जो कुछ सामने है, वही सब कुछ है । स्थूल देह ही सर्वत्र काम कर रहा है। जन्म से लेकर मृत्यु तक इस स्थूल देह के साथ ही इन्द्रियाँ और मन काम करते हैं । देह के नष्ट होते ही ये सब नष्ट हो जाते हैं । इस प्रकार उनकी बुद्धि देह के अतिरिक्त किसी आत्मा नामक तत्त्व को स्वीकार नहीं कर सकी । वे देहात्मवादी ही रह गए ।
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संसार में यह विचारधारा नई नहीं है । बहुत प्राचीन काल में भी कुछ लोग यह मानते थे कि जो शरीर है, वही आत्मा है । जो दीखता है वह देह आत्मा से कोई अलग वस्तु नहीं है । इस विचारधारा के विभिन्न रूप प्राचीन काल में प्रचलित थे ।
देहात्मवादियों के पाँच रूप
प्रस्तुत बीसवें अध्ययन में अर्हत ऋषि इन्हीं देहात्मवादियों के विभिन्न