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________________ आर्य और अनार्य की कसौटी ११ जो व्यक्ति आर्य मित्रों के साथ रहकर नित्य आर्यकर्म करते हैं वे वास्तव में आर्य हैं, भले ही वे अनार्यकुल, जाति या क्षेत्र आदि में उत्पन्न हुए हों। ऐसे आर्यजन ही भवसागर से छुटकारा पा (मुक्त हो) सकते हैं । जाति आदि से अनार्य किन्तु अन्तर् से सच्चे आर्य 1 तीसरे प्रकार के व्यक्ति वे हैं, जो जाति, कुल आदि से अनार्य होने पर भी विचार और आचार से अथवा सम्यग्दर्शन - ज्ञान चारित्र से आर्य होते हैं । नदी की जलधारा के प्रवाह में पड़ा हुआ तिनका सागर से जाकर मिल जाता है वैसे ही महापुरुषों का साहचर्य पाने वाला कुल-जातिविहीन तथाकथित अनार्य व्यक्ति भी आर्यत्व के सर्वोच्च शिखर पर पहुँच जाता है. उसकी आत्मा सम्यग्ज्ञान दर्शन - चारित्र तप से कर्ममुक्त एवं विशुद्ध होकर परमात्मतत्व को प्राप्त कर लेती है । हरिकेशी मुनि गंगा तट पर चाण्डालों की बस्ती में चाण्डाल कुल और शूद्र जाति में पैदा हुए थे । रंग-रूप में भी वे बहुत बदसूरत मुँह के भी कटुभाषी थे । कुरूपता और कटुभाषिता इन दो दुर्गुणों के कारण वे सर्वत्र अपमानित होते थे । अतएव हरिकेशबल जाति, कुल क्षेत्र, कर्म, भाषा और शिल्प सभी दृष्टियों से अनार्य थे । किन्तु होश संभालने पर एक दिन उन्हें एक मुही (सर्प) से प्रशान्त जीवन जीने की प्रेरणा मिली । वे संयमी बनकर तप और संयम की साधना से अपनी आत्मा को शुद्ध-निर्मल कर्ममलमुक्त बनाने में लग गए। अपने हृदय को समस्त कलुषित वृत्तियों से दूर रखकर श्रेष्ठ (आर्य ) वृत्तियों में बदला । उनकी तपस्या और चारित्र की उत्कृष्टता की कसौटी भी हुई। उसमें वे खरे उतरे । चेहरे से अनार्य-से प्रतीत होने पर भी उनके अन्तरात्मा में आर्यत्व सोलह कलाओं से खिल उठा । उनकी समता और धीरता की भी परीक्षा हुई । आर्यत्व के उत्तम गुणों में पारंगत देखकर तिन्दुक वन स्थित एक यक्ष इनका परमभक्त होकर सेवा में रहने लगा । उन पर आये हुए उपसर्ग का निवारण किया । हरिकेशी मुनि को मासखमण के पारणे पर मारने को उतारू याज्ञिक विप्र इनके परम भक्त बन गए, भक्तिपूर्वक आहार दिया । अन्त में, पूर्ण संयम साधना के बला पर केवलज्ञान प्राप्त किया और भवसागर से पार होकर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हुए। हरिकेश मुनि अज्ज मुहम्मा, अज्ज जंबू (आर्य सुधर्मा, आर्य जबू) की तरह परम-आर्य बन गए । बन्धुओ ! जीवन को श्रेष्ठ (आर्य) बनाने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि मनुष्य ने उच्चकुल, जाति, ऐश्वर्य युक्त देश या उन्नत क्षेत्र में जन्म लिय
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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