________________
आर्य और अनार्य की कसौटी ७
नाम से आर्य : काम से नहीं ये कुल, जाति, क्ष ेत्र, कर्म, शिल्प और भाषा से आर्य तो इस अपेक्षा से आर्य कहलाते हैं, कि उच्च कुल, जाति, आर्यक्ष ेत्र, आर्यकर्म, सात्त्विक शिल्प, शिष्टभाषा आदि के सम्पर्क से, उस-उस कुल, जाति आदि के वातावरण से मनुष्य अनार्य कर्म करने से बच जाते हैं, प्रायः वे आर्यत्व के संस्कार पा लेते हैं । उच्चकुल, जाति, क्षेत्र आदि में जन्म लेने पर भी यदि मनुष्य सद्विचार और सदाचार से हीन है, तो वह आर्य नहीं कहला सकता । अशुभ विचारों और अनिष्टकारी कृत्यों के कारण मनुष्य अनार्य या म्लेच्छ ही कहलाएगा, फिर भले ही वह उच्चकुल, जाति, क्षेत्र का हो; भले ही वह सात्विक शिल्प. शिष्टभाषा या आर्यकर्म से युक्त हो। कई व्यक्ति उच्चकुल, उच्चजाति आदि में पैदा होकर भी जीवन को निम्नकोटि का बना लेते हैं, उनका हृदय ईर्ष्या, द्वेष, निन्दा, कलह, एवं क्रोधादि कषाय का अखाड़ा बन जाता है । फलतः ऐमे लोग उच्चकुल आदि में जन्म लेकर भी सदैव निन्दित, गहित एवं घृणित कार्य करते रहते हैं । इसलिए सम्यक्ज्ञान, दर्शन और चारित्र के धनी पुरुष ही सच्चे माने में आर्य हैं ।
आर्य और अनार्य की पहचान के लिए यही कारण है कि आर्यायण अर्हतषि को चेतावनी के स्वर में उन उच्चकुल आदि में पैदा हुए लोगों को कहना पड़ा
जे जणा अणारिए णिच्च, कम्मं कुव्वंत अनारिया । अणरिएहि य मित्तेहि, सोदंति भव-सागरे ॥ २ ॥
जो व्यक्ति अनार्य मित्रों के साथ मिलकर हमेशा ही अनार्य कर्म करते रहते हैं, वे (भले ही उच्चजाति, कुल आदि में पंदा हुए हों। अनार्य ही हैं । ऐसे अनार्यजन भवसागर में डुबकियां लगाते हैं ।
स्थानांगसूत्र में आर्य और अनार्य का सुन्दर विश्लेषण किया गया है, जिसके आधार पर हम निर्णय कर सकते हैं कि सच्चे माने में आर्य कौन है, अनार्य कौन है ? वह सूत्र इस प्रकार है
चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा(१) अज्जे णाममेगे अज्जभावे, (२) अज्जे णाममेगे अणज्जभावे, (३) अणज्जे णाममेगे अज्जभावे, (४) अणज्जे णाममेगे अणज्ज भावे ।