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________________ अमरदीप प्रज्ञापनासूत्र में क्षेत्र, कुल, जाति आदि कई अपेक्षाओं से आर्य के नौ प्रकार बताये गये हैं खेत्ते जाई कुल-कम्म-सिप्प-भासाइ-नाण-चरणे य । दसण-आरिय णवहा मिच्छा सगजवणखसमाई। अर्थात्-क्षेत्र, जाति, कुल, कर्म, शिल्प, भाषा, ज्ञान, दर्शन और चारित्र, यों नौ अपेक्षाओं से नौ प्रकार के आर्य कहलाते हैं। इनकी परिभाषा इस प्रकार हैं क्षेत्रार्य - आर्य क्षेत्र में जन्म लेने या रहने वाला । भारतवर्ष के प्राचीन भूगोल के अनुसार शास्त्र में २५ । आर्य क्षेत्र माने जाते हैं । जहाँ प्रायः पापाचरण न होता हो, धर्म-कार्यों में प्रवृत्ति हो, तथा पापाचरण समाज द्वारा निन्द्य तथा अननुमोदित हो, वह आर्य क्षेत्र है। आर्य क्षेत्र में स्वभावतः पाप कार्यों के प्रति घृणा होती है। किन्तु अनार्य क्षेत्र वे हैं जहाँ जन्म से ही बालक हिंसक, पापो और दुर्ब द्धि बन जाते हैं । जात्यार्य-उच्च जाति में जन्म लेने वाले प्रायः जात्यार्य माने जाते हैं। जाति का अर्थ मातृपक्ष है । जिसका मातृपक्ष उत्तम संस्कारों से सम्पन्न हो, वह जात्यार्य है। कुलार्य-विशुद्ध वंश परम्परा में जन्म लेने वाले प्रायः कुलार्य कहलाते हैं। साधारणतया पितृपक्ष कुल कहलाता है। कुलीन वश में जन्म लेने वाला बालक प्रायः उत्तम विचार और आचरण को ग्रहण कर लेता है। विवाह करते समय इसी कारण कुल-खानदान देखा जाता है। __कार्य-जिनका व्यवसाय सात्त्विक हो, हिंसा, झूठ, ठगी, बेईमानी आदि का न हो, वे कर्म (आजीविका) से आर्य कहलाते हैं। शिल्पार्य-बर्तन बनाना, काष्ठ से वस्तुओं का निर्माण करना, रूई धुनना, वस्त्र बुनना आदि शिष्ट सात्विक शिल्प (हुनर) से जो आर्य हो, वह शिल्पार्य है। भाषार्य-स्पष्ट और शुद्ध व्यक्त शिष्टपुरुषप्रयुक्त भाषा आर्य-भाषा कहलाती है। अतः जो भाषा से आर्य हो, वह भाषार्य है। ज्ञानार्य, दर्शनार्य, चारित्रार्य- सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यकचारित्र जिन्हें प्राप्त हो, वे ज्ञान, दर्शन तथा चारित्र से आर्य कहलाते हैं।
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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