________________
आर्य और अनार्य की कसौटी ५ करते हैं। वे जरा सा अधिकार या पद पाकर दूसरों को पछाड़ने, नीचा दिखाने एवं बदनाम करने में तत्पर रहते हैं । मद एवं अहंकार में छके रहने के कारण वे दूसरों का अपमान करते देर नहीं लगाते । धन और सत्ता के लिए वे तिकड़मबाजी और हेराफेरी करते रहते हैं। पापकर्म करने में जरा भी भय न होने के कारण उन्हें भविष्य में होने वाली दुर्गति का जरा भी भान नहीं रहता। उत्तराध्ययन सूत्र के शब्दों में अनार्य का लक्षण देखिये
हिंसे बाले मुसावाई माइल्ले पिसुणे सढे । भूजमाणे सुरं मंस सेयमेयं ति मन्नई. ।। कायसा वयसा मत्त, वित्त गिद्ध य इत्थिसु । दहओ मलं संचिणइ, सिसुणागुव्व मट्टियं ॥
-उत्तरा० ५/8-१० अर्थात-अज्ञानी अनार्य व्यक्ति हिंसापरायण, मषावादी, मायी (कपटी), चुगलखोर एवं शठ (धूर्त) होता है, वह मांस और मदिरा का सेवन करता हुआ, इसी में अपना श्रेय समझता है। वचन और काया से वह मदोन्मत्त, धनलोलुप और कामी (स्त्रियों में आसक्त) पुरुष बाह्य और आभ्यन्तर दोनों ओर से पाप-कर्ममल का उसी तरह संचय करता है; जिस प्रकार शिशुनाग (अलसिया) अपने पेट में और शरीर पर भी मिट्टी संचित कर लेता है।
_ 'आर्यत्व' का अर्थ है-श्रेष्ठता । श्रेष्ठता कपड़ों में, मकानों में या नये-नये सुख-साधनों में नहीं, वह तो मनुष्य के चरित्र में है।
__ कहते हैं-एक बार स्वामी विवेकानन्दजी अमेरिका की सड़कों पर घूम रहे थे। उनके बदन पर संन्यासी की सिर्फ एक गेरुआ चादर बड़ी बेतरतीब लिपटी हुई थी। उनके इस रंग-ढंग को देखकर अमेरिकावासियों ने स्वामी जी को घूर-घूर कर देखा, कइयों ने कहा- "भारत में सभ्यता और संस्कृति का विकास नहीं हुआ।' तब स्वामी जी ने उनको लताड़ते हुए कहा-"तुम्हारे यहाँ की संकृति का निर्माण दर्जी करता है, भारत की संकृति का निर्माण चरित्र से होता है। तुम्हारी संस्कृति कपड़े में झलकती है, भारत की संस्कृति मनुष्य के आचरण से प्रकट होती है।"
नौ प्रकार के आर्य : एक चिन्तन धार्मिक तथा ऐतिहासिक दृष्टि से विचार करें तो आर्यों के अनेक प्रकार हैं।