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________________ ४३ इच्छाओं के इन्द्रजाल से बचें ! धर्मप्रेमी श्रोताजनो ! मनुष्य का मन विराट् सागर है। जिसमें प्रतिक्षण सैकड़ों लहरें उठती हैं । उनकी चकाचौंध में मनुष्य का मन लुभा जाता है । वह उन लहरों के पीछे बेतहाशा दौड़ने का प्रयत्न करता है, किन्तु उन्हें पकड़ नहीं पाता, हार थक कर वहीं बैठ जाता है । उसका असन्तोष उसके मन को दुःखित करता है, इतने में दूसरी लहर आकर फिर उसके मन में नाचने लगती है । यों मनुष्य उन लहरों के पीछ दीवाना बनकर दौड़ लगाता है, लेकिन पल्ले कुछ भी नहीं पड़ता । वह विवश होकर हाथ मलता रह जाता है । वह सोचता है - इस इच्छा की पूर्ति के बाद मैं सन्तुष्ट हो जाऊंगा, परन्तु याद रखिए - हर इच्छा की पूर्ति, अपूर्ति का नया द्वार खोलती है । पाश्चात्य विचारक सिसरो ने ठीक ही कहा था The thirst of desire never filled, nor fully satisfied. - 'इच्छाओं की प्यास कभी नहीं बुझती और न ही पूर्णरूप से सन्तुष्ट होती है ।' इच्छाओं को पालकर मनुष्य दुःख, भय और चिन्ताओं को पालता है । इच्छाओं के संकेत पर चलने वाले मानव की स्थिति वैसी ही है, जैसी सागर की लहरों के अनुरूप चलने वाले नाविक की होती है । महाकवि शेक्सपीयर ने कहा था- 'इच्छा यदि घोड़ा बन जाती तो प्रत्येक मनुष्य घुड़सवार हो जाता ।' मनुष्य सोचता है कि मैं इच्छाओं पर सवार हूं, लेकिन वास्तव में इच्छाएँ ही उस पर सवार हो जाती हैं ।
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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