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________________ अमरदीप यही कारण है कि उन्नीसवें अध्ययन में अहंतर्षि आर्यायण ने इसी ज्वलन्त प्रश्न की चर्चा करते हुए कहा २ सव्वमिणं पुरा आरियमासि आरियायणेणं अरहता इसिणा बुइतं । वज्जेज्ज अणारियं भावं, कम्मं चेव अणारियं । अणारियाणि य मित्ताणि आरियत्तमुवट्ठिए ॥ १ ॥ - पहले यहाँ सब लोग आर्य ही थे, इस प्रकार अर्हतषि आर्यायण ने कहा । (सच्चे माने में आर्य बनने के लिए व्यक्ति को चाहिए कि वह ) अनार्य - भाव (विचार) का परित्याग करे, साथ ही अनार्य कर्म ( आचार या अजीविका के कर्म) को भी छोड़े। इसके लिए अनार्य मित्रों की भी संगति छोड़े, और आर्यत्व में प्रवेश करने के लिए उद्यत हो जाये । अतर्षि आर्यायण ने सर्वप्रथम यह चिन्तन किया कि प्राचीनकाल में यहाँ सभी आर्य थे । इसीलिए भारत देश का प्राचीन नाम 'आर्यावर्त' था । यहाँ के रहन-सहन, संस्कृति, वेशभूषा, भाषा, आचरण, व्यवहार और विचारों में आर्यत्व ओतप्रोत था । किन्तु आज भारत से आर्यत्व विदा ले रहा है और अनार्यत्व पनप रहा है। भारतीय जनमानस में आज अनार्यत्व की छाया पड़ की है। उसके कर्मों में, आचरण और व्यवहार में अनार्यव प्रतिबिम्बित हो रहा है । उसके रहन-सहन, संस्कृति, वेशभूषा एवं भाषा में भो अनार्यत्व के संस्कार घुस चुके हैं । यहाँ की पारिवारिक, सामाजिक एवं. राष्ट्रीय व्यवस्थाएँ छिन्न-भिन्न हो चुकी हैं। उदात्त धार्मिक विचार लुप्त हो रहे हैं | संकीर्ण जातिवाद, वर्णवाद, रंगवाद एवं स्वार्थवाद ने आर्यत्व की जड़े हिला दीं। भाई-भाई बनकर रह रहे भारतीय जनों को इन संकीर्ण विचारों और स्वार्थ के कीड़ों नें अलग अलग कर दिया। जिसके पास धन अधिक रहा, जिसके पास आजीविका के अच्छे स्रोत रहे भोग-विलास के प्रचुर साधन रहे तथा जिसके हाथों में सत्ता आ गई. वह कर्म और आचरण से कैसा भी रहा, 'आर्य' बन बैठा। उन अनार्यसंस्कारी सत्ताधारी और धनिकों के साथ अच्छे विचार और आचार वाले निर्धन व्यक्तियों ने भी साठ गाँठ की, उनकी संगति में रहने लगे और इस प्रकार भारतवर्ष में अनार्यत्व पनपने लगा । आर्य और अनार्य की परिभाषा सामान्यतया आर्य शब्द का अर्थ होता है— श्रेष्ठ । शब्दशास्त्र की दृष्टि से आर्य शब्द के प्रायः दो अर्थ मुख्यतया शास्त्रों की टीकाओं में मिलते हैं
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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