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आर्य और अनार्य की कसौटी
धर्मप्रेमी श्रोताजनो !
आज मैं भारतीय संस्कृति और धर्मों से सम्बन्धित एक ऐसे विषय की चर्चा करना चाहता हूं, जिसकी आधारशिला आचार-विचार की पवित्रता और अपवित्रता पर आधारित है । वे दो शब्द हैं, जिन पर मुझे आज प्रकाश डालना है-आयं और अनार्य । आर्य कौन हैं और अनार्य कौन हैं ? इस पर अगर हम ऐतिहासिक दृष्टि से ही पर्यालोचन करेंगे तो वस्तुतत्व की वास्तविक तह में नहीं पहुँच पाएँगे । जाति, देश और भाषा आदि स्थूल बातों के आधार पर ही आर्यत्व और अनार्यत्व का यथार्थ निर्णय नहीं किया जा सकता। यदि आप कहेंगे कि जिसने आर्यजाति में जन्म लिया वह आर्य है, तो आर्यत्व केवल रक्त में ही रह जाएगा। उच्च आचार और विचार से शून्य व्यक्ति भी आर्य कहलाने लगेगा। वास्तविकता यह है कि आर्य वह है जो उत्तम विचार और श्रेष्ठ आचार से युक्त हो, जिसके विचारों में आर्यत्व है, जिसका सुसंस्कृत आचार आर्यत्व के अनुरूप है, वही व्यक्ति आर्य कहलाने योग्य है।
आचार की पवित्रता विचारों की पवित्रता पर अवलम्बित है और विचारों की पवित्रता श्रेष्ठ पुरुषों की संगति एवं तदनुसार श्रेष्ठ आचरण के अभ्यास से सुरक्षित रहती है । कहावत है -'जैसा संग, वैसा रंग' । मनुष्य जिसके साथ अधिक रहता है, वैसा ही बन जाता है। एक पाश्चात्य विचारक महाकवि कहता है
Tell me with whom thou art found,
and I will tell thee, what thou art. मुझे बताओ कि तुम किसके साथ अधिक रहते हो, मैं तुम्हें बता दूगा कि तुम क्या हो ?'