SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आत्मनिष्ठ सुख की साधना के मूल मन्त्र २४३ की प्रेरणा उनकी वाणी में है । स्वतत्त्व का अवबोध, तप आदि उस स्वरूपस्थिति तक पहुंचने के सोपान हैं । फलितार्थ यह है कि संवेग, निर्वेद, जिनभाषित उपदेश या जिनेश्वर का सर्वोदयात्मक उपदेश विषयनिष्ठ सुखों से विरक्त होकर आत्मनिष्ठ सुख के शिखर तक पहुंचने का उपाय है। आत्मनिष्ठ सुख के लिए वन या आश्रम निवास का औचित्य अब प्रश्न यह है कि क्या आत्मनिष्ठ सुख की प्राप्ति के लिए वन या आश्रम में रहना चाहिए या और कोई उपाय है ? इसके समाधान के लिए अर्हतषि कहते हैं- दतिदियस्स वीरस्स किं रणेणास्समेण वा । जत्थ जत्थेव मोडेज्जा, तं रण्णं सो य अस्समो ॥१३॥ किमुदंतस्स रणेणं, दंतस्स वा किमसमे ? णातिक्कतस्स भेसज्जं, ण वा सत्यस्स भेज्जता ॥ १४ ॥ सुभाव-भावितप्पाणो, सुण्णं रण्णं जणं पि वा । सव्वं एतं हि झाणाय, सल्ल-चित्तेव सल्लिणो ॥ १५ ॥ दुहरूवा दुरंतस्स णाणावत्था वसुन्धरा । कमावणाय सव्वंपि, कामचिते व कामिणो ॥ १६ ॥ अर्थात् - जो दमितेन्द्रिय वीर है, उसे अरण्य और आश्रम से क्या प्रयोजन है ? जहाँ-जहाँ मोह का अन्त हो, वही अरण्य है और वही आश्रम है ||१३|| इन्द्रिय-विजेता के लिए जंगल क्या और दान्त (दमनशील) व्यक्ति के लिए आश्रम क्या ? अर्थात् उसके लिए वन और आश्रम दोनों समान हैं । रोग से अतिक्रान्त (मुक्त) के लिए औषध की आवश्यकता नहीं और शस्त्र के लिए अभेद्यता नहीं, अर्थात् - वह सबको भेद सकता है । अथवा मर्यादाहीन के लिए कोई औषध नहीं है और स्वस्थ व्यक्ति को भी औषध की आवश्यकता नहीं है ||१४|| स्व-भाव से भावित आत्मा के लिए जनशून्य वन और जनयुक्त निवास एक समान है । ये सभी वस्तुएँ उसके लिए उसी तरह धर्मस्थान की निमित्त होती हैं, जिस तरह सशल्य चित्त वाले के लिए आर्त्तध्यान की ।। १५ ।। जिस प्रकार कामी व्यक्ति के लिए सारी सृष्टि कामोत्पादक होती है, उसी प्रकार दुरन्त (आत ध्यान से पीड़ित ) व्यक्ति के लिए नानारूप में स्थित विराट वसुन्धरा (सृष्टि) दुःखरूप और कर्मादान की हेतु है ॥ १६ ॥
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy