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सृष्टि का रहस्य ?
सृष्टि की उत्पत्ति कैसे ? धर्मप्रेमी श्रोताजनो ! प्रत्येक विचारक साधक के मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि जिस सष्टि में हम रहते हैं, उसकी उत्पत्ति कैसे हुई ? कोई दर्शन इस सृष्टि की उत्पत्ति अंडे से मानता है, तथा कोई इसे वाराह द्वारा समुद्र से बाहर लाई हुई मानता है। कोई इसे अन्य रूप में मानता है। किन्तु ये समाधान तर्क की कसौटी पर यथार्थ नहीं टिकते ।
डाविन द्वारा मान्य विकासात्मक सृष्टि वर्तमान विज्ञान सृष्टि की उत्पत्ति के लिए विकासवाद को मानता है। विकासवाद का प्रणेता ‘डाविन' कहता है-करोड़ों वर्ष पहले यह पृथ्वी इतनी गर्म थी कि उस पर कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह सकता था। फिर उसकी परत कुछ शीतल हुई तो छोटे जन्तुओं ने जन्म लिया। उनके द्वारा कुछ कीड़े आदि पैदा हुए । फिर उन्होंने विकास किया तो बड़े रेंगने वाले प्राणी जन्मे । उन्होंने विकास किया तो चौपाये जानवर जन्मे । उनमें से बौद्धिक पटुता लेकर बन्दर जन्मा और बंदरों का विकसित रूप मानव है। यह है--विकासवाद का संक्षिप्त रूप। तर्क यह है कि लाखों करोड़ों वर्षों पूर्व कुछ बंदर मानव बने थे। उसके बाद लाखों की संख्या में जो बंदर थे उन्होंने विकास क्यों नहीं किया ? माना कि सब बंदर विकास नहीं कर सकते, तो सौ या हजार वर्ष के बाद एक बंदर को तो मनुष्य के रूप में विकसित होना चाहिए था, फिर मनुष्य का भी कुछ विकास होना चाहिए था, ऐसा भी कुछ नहीं हुआ। अतः डार्विन का यह विकासवाद भी तर्क की तुलना पर यथार्थ नहीं बैठता । हाँ, आत्मा विकास करती है और वह शरीर का चोला बदल कर दूसरा शरीर धारण करके दूसरे रूप में आ सकती है, किन्तु