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________________ २३२ अमरदीप एक ही जन्म में एक वर्ग का प्राणी विकसित होकर अन्य रूप ले, यह सम्भव नहीं है । प्रस्तुत सैंतीसवें अध्ययन में ब्राह्मण परिव्राजक श्रीगिरि अहंतर्षि ने सृष्टि की उत्पत्ति के विषय में चर्चा करते हुए पहले पूर्वपक्ष प्रस्तुत किया है ___ सव्वामिणं पुरा उदगमासीत्ति सिरिगिरिणा माहण-परिवायगंण अरहता इसिणा बुइतं । "एत्थ अंडे संतत्ते, एत्थ लोए संभूते । एत्थं सासासे । इयं णे वरुणविहाणे । उमनोकालं उमओसंझं खीरं लवणीयं मधु-समिधासमाहारं खारं संखं च पिता अग्निहोत्तकुण्डं पडिजागरमाणे विहरिस्सामीति, तम्हा एयं सव्वं, ति बेमि ।" . अर्थात् - 'वह अण्डा आया और फूटा। उससे लोक उत्पन्न हुआ और सारी सृष्टि उत्पन्न हुई । कोई यह कहते हैं कि वरुणविधान हमें मान्य नहीं है। वह कहता है-उभयकाल दोनों सन्ध्या को क्षीर, नवनीत (मक्खन), मधु (शहद) और समिधा (लकड़ियाँ), इन सबको एकत्रित करके क्षार और शंख को मिलाकर अग्निहोत्र कुण्ड को प्रतिजाप्रत करता रहूंगा । इसलिये मैं यह सब बोलता हूं।' वैदिक परम्परा में सृष्टि के विषय में कई मत उस युग में प्रचलित थे, जिनका उल्लेख सूत्रकृतांगसूत्र (अ. १, उ. ३, गा. ५-६-७) में है (१) यह लोक देवों ने बनाया है। (२) यह सृष्टि ब्रह्मा ने बनायी है। (३) यह सृष्टि ईश्वर द्वारा रचित है। (४) यह विश्व प्रकृति की कृति है। (५) कोई इसे स्वभाव से निर्मित मानते हैं। (६) कुछ महर्षि ऐसा मानते हैं कि ब्रह्माजी ने सृष्टि रचकर सोचा कि यदि इसी प्रकार सृष्टि का निर्माण ही होता गया तो उसका समावेश कहाँ होगा ? अतः उन्होंने (संहार के लिए) यमदेव का निर्माण किया, फिर माया को रचा, जो लोक का संहार करती है। यहाँ अर्हतर्षि पूर्वपक्ष के रूप में लोक की उत्पत्ति अण्डे से बताते हैं, महासागर में एक अण्डा तैरता हुआ आया। वह फूटा और दो खंडों में विभक्त हो गया। पहले खण्ड से ऊर्ध्वलोक और निम्नखण्ड से अधोलोक बना। उसी से यह चराचर सृष्टि पैदा हुई । कई कहते हैं कि जल के देव. वरुण ने अण्डा भेजा, अण्डा फूटा, दुनिया बाहर आई और श्वास लेने लगी।
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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