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________________ २१८ अमरदीप जागना चाहिए, क्योंकि यह आत्मनिधि के अपहरणकर्ता-कषाय, वासना आदि चोरों की नगरी है। भगवन् महावीर की आत्मा जाग्रत है, किन्तु उनकी जागृति साधक की आत्मा को बचा नहीं सकती। जब तक स्वयं आत्मा की जागृति नहीं होती, सम्यग्दृष्टि की ज्योति प्राप्त नहीं होती, तब तक कषायों और वासना के तस्करों से दुनिया की कोई भी शक्ति नहीं बचा सकती। धर्मकार्य आत्मिक जागति के क्षेत्र हैं। इनमें प्रमाद होने पर तुम्हारी पांचों इन्द्रियाँ, चार संज्ञाएँ, तीन दण्ड, तीन शल्य, तीन गौरव, बाईस परीषह और चार कषाय आदि सभी चोर बनकर तुम्हारे संयम, योग, तप, त्याग आदि आत्मनिधि का अपहरण कर लेंगे। तुम्हारी जरा-सी असावधानी चोरों को रास्ता दे सकती है। आत्मिक साधना के लिए प्रमाद भी बहुत बड़ा लुटेरा है। इसलिए प्रतिक्षण जाग्रत रहो । अन्यथा, इन चोरों से घिर जाने पर आत्मा दुष्कर्म करने लगेगा, फिर उसे दुर्गति का मेहमान बनना पड़ेगा। जागृति का अर्थ यहां आत्म-जागृति-भावजागरण है, केवल आँखें खुली रहना ही जागृति नहीं है । भावजागृति का एक अर्थ है---वस्तुस्वरूप का दृढ़ निश्चयात्मक ज्ञान; जिसे गीता में व्यवसायात्मिका बुद्धि कहा है। जब तक वस्तुस्वरूप का दृढ़ निश्चयात्मक ज्ञान न हो, तब तक उसे देख लेना कोई महत्व नहीं रखता। किसी वनस्पति को देख लेने मात्र से वह औषध के रूप में काम नहीं दे सकती, गुण न जाना जाए, तब तक नागदमनी (विषनाशक बेल) भी केवल जड़ी मात्र है। एक पीड़ित व्यक्ति जिसके शरीर में जगह-जगह घाव हो रहे हैं, औषधिविक्रेता के पास भी पहुँचता है वह औषधि का मूल्य जानने से पहले ही घबरा जाता है कि मैं निर्धन इस औषधि को कहाँ खरीद सकूँगा ? इस प्रकार औषधियों के भण्डार के पास जाकर भी वह स्वास्थ्य लाभ नहीं कर सकता । अतः साधक भी वस्तुतत्व का दृढ़ निश्चयात्मक ज्ञान करे, यहो भाव-जागृति है, वही भावचोरों को अज्ञात अट्टालिका में रक्षण दे सकती है। भावजागृति से विशेष लाभ बाईसवीं-तेईसवीं गाथाओं में अर्हतर्षि ने भावजागृति से साधक को विशिष्ट लाभ की बातें कही हैं। वीतराग प्रभू द्वारा उक्त सत्र भी उसी के लिए जाग्रत रहता है, यानी प्रकाश दे सकता है, जिस साधक की आत्मा जाग्रत है । वैसे सुत्त तो सुप्त (सुत्त) रहता है, उसे जगाने की आवश्यकता
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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