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________________ कषायों के घेरे में जाग्रत आत्मा २१७ जागरह णरा णिच्चं जागरमाणस्स जागरति सुत्त। जे सुवति न से सुहिते, जागरमाणे सुही होति ॥२२ । जागरंतं मुणिधीरं दोसा वज्जति दूरभो। अलंतं जातवेयं वा चक्खुसा दाहभीरुणो ॥२३॥ अर्थात्-अज्ञात अट्टालिका में सैनिक वीर जागता रहे तो उससे क्या होगा ? स्वयं को ही जागना होगा। क्योंकि यह ग्राम चोरों का है । ॥१७॥ जाग्रत रहो, सोओ मत ! ऐसा न हो कि धर्माचरण में प्रमादी रहने पर तुम्हारे संयमयोग में बहुत से चोर घुसकर लूट-पाट कर लें ॥१८॥ पाँच इन्द्रियां, चार संज्ञा, तीन दण्ड, तीन शल्य, तीन गौरव, बाईस परीषह और चारों कषाय, ये सभी चोर हैं। (इनसे साधक को सावधान रहना चाहिए) ॥१६॥ . ___ मनुष्य ! सदा जाग्रत रहो । धर्माचरण में प्रमादी मत बनो । (तुम्हारे आसपास छिपे हुए) ये बहुत से भावचोर कहीं दुर्गतिगमन का निकृष्ट कर्म न कर लें ॥२०॥ इस अज्ञात अट्टालिका में जागता हआ भी तू शोचनीय है । जैसे कोई निर्धन व्यक्ति घाव हो जाने पर दवा की कीमत न समझकर दवा खरीदने में असमर्थ रहता है, उसी प्रकार तुम भी समझो कि भावजागृति के अभाव में तुम भी वस्तु तत्व को पाने में असमर्थ रहोगे ॥२१॥ ___ मनुष्यो ! सदैव जाग्रत रहो ! जाग्रत रहने वाले का सूत्र (शास्त्र ज्ञान) भी जाग्रत रहता है । जो सोता है, उसके लिए सुख नहीं है । जाग्रत रहने वाला ही सदा सुखी होता है ॥२२॥ __ जाग्रत वीर मुनि को दोष उसी प्रकार छोड़ देते हैं, जिस प्रकार जलने से डरने वाले जलती हुई अग्नि को आँखों से देखते ही दूर हट जाते हैं ॥२३॥ प्रस्तुत सात गाथाओं में अहर्षि ने कषायों, इन्द्रियों, मन, वचन, काया, दण्ड आदि को चोर बताकर इनसे सावधान और जाग्रत रहने का निर्देश किया है। अज्ञात कोट में घिर जाने पर व्यक्ति को स्वयं भी जाग्रत रहना पड़ता है, वह किसी वीर पहरेदार के भरोसे अपने को नहीं छोड़ सकता। उस मौके पर स्वयं को जागना चाहिए, क्योंकि वह चोरों की नगरी है। यही हाल कषायों आदि के घेरे में घिर जाने पर साधक का है। उसे स्वयं
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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