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________________ १७६ अमरदीप जिसने परिव्राजक वेष में रहकर भगवान् की उपासना की थी । भ. महावीर के उपदेश ने इन्हें काफी प्रभावित किया था। भगवान् महावीर ने स्पष्ट कहा-'मुझे मिलने में वेश दीवार नहीं बन सकता।' अर्हतर्षि पिंग भी ब्राह्मण परिव्राजक थे।' उन्होंने उसी रूप में सत्यदृष्टि पाई थी । इसीलिए ऋषिभाषित-सूत्रकार ने इनका विशेष रूप से परिचय दिया है । अर्हतर्षि पिंग ऋषियों के लिए दिव्यकृषि की प्रेरणा दे रहे हैं। दिव्यकृषि आध्यात्मिक खेती है। जैन और बौद्ध परम्पराओं ने इस आध्यात्मिक खेती पर प्रकाश डाला है। छब्बीसवें अध्ययन में मातंग अर्हतर्षि ने भी दिव्यकृषि का उपदेश दिया है। उत्तराध्ययन सूत्र के बारहवें अध्ययन में भी श्वपाककुलोत्पन्न हरिकेश मुनि ने ब्राह्मण कुमारों को आत्मिक कृषि की प्रेरणा दी है। आपकी कृषि कैसी है यहाँ भी अर्हतर्षि पिंग ने जब दिव्यकृषि का निर्देश किया तो एक कृषक ने इस प्रकार प्रश्न किया ___ कतो छत्तं, कतो बीयं, कतो ते जुग-णंगलं । गोणा वि ते ण पस्सामि, अज्जो ! का णाम ते किसी ? । अर्थात्-तुम्हारा क्षेत्र (खेत) कहाँ है ? तुम्हारे पास बोने के लिए 'बीज' कहाँ है ? और कहां हैं तुम्हारे युग-लांगल (हल)? तुम्हारे पास जोतने के लिए बैल भी तो नहीं देख रहा हूँ। हे आर्य ! फिर तुम्हारी खेती कैसी है ? दिव्यकृषि के प्ररूपक पिंग अर्हतर्षि से कृषक ने पूछा-आप कहते हैं-मैं दिव्य खेती करता हूँ, परन्तु खेती के लिए उपयोगी एक भी प्रसाधन आपके पास दिखाई नहीं देता। न आपके पास खेत है, न बैल हैं' न हल है, न बीज हैं, फिर समझ में नहीं आता कि आप कैसी खेती करते हैं। आध्यात्मिक कृषि के प्रसाधन आध्यात्मिक खेती के प्रसाधनों का निरूपण करते हुए पिंग अर्हतर्षि ने कहा आता छत्तं तवो बीयं, संजमो जुगणं गलं । अहिंसा समिति जोज्जा, एसा धम्मंतरा किसी ॥२॥ अर्थात्-आत्मा क्षेत्र (खेत) है, तप बीज है, संयम युगलांगल है, अहिंसा और समिति, जोतने लायक (दो पुष्ट बैल) हैं, यही मेरी धर्मान्तर कृषि है। .
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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