________________
इन्द्रिय-निग्रह का सरल मार्ग १५७ जितेन्द्रिय साधक की साधना यदि एकमात्र मोक्ष को लक्ष्य में लेकर हो रही है, तो ऐसे साधक के चरणों में सुरेन्द्र, असुरेन्द्र, या नरेन्द्र भी नतमस्तक हो जायें, इसमें कोई आश्चर्य नहीं।
जो दान्त-शान्त, सर्वपदार्थों से अथवा सर्वइन्द्रियविषयों से विरत होकर सभी ओर दौड़ने वाली अपनी मनोभावनाओं को केन्द्रित कर चूका है,
और जिसने इन्द्रियों पर विजय पा लिया है। वही साधक वीतकषाय होकर शाश्वत सुख स्थितिरूप सिद्धरूप को प्राप्त करता है। बन्धुओ!
• इन्द्रियों और मन पर विजय पाने से, इनकी शक्तियों को शुद्ध दिशा में लगाने से, इन्हें सुशिक्षित एवं संयमित रखने से कर्मों के स्रोत बंद हो सकेंगे। तथा जीवन में उत्क्रांति आएगी तभी तपस्या सफल होगी, वह आत्मशुद्धि में सहायक हो सकेगी और साधक एक दिन मोक्ष प्राप्त कर सकेगा। चाहिए इस ओर सतत पुरुषार्थ !
आप भी इस ओर बढ़िये । ऐसा मत सोचिए कि हम गृहस्थ इन्द्रियसंयम कैसे करें? आप भी पूणिया श्रावक, आनन्द श्रमणोपासक आदि की तरह पुरुषार्थ कीजिए । सफलता आपके साथ है।