________________
३२ इन्द्रिय-निग्रह का सरल मार्ग
इन्द्रियनिग्रह : क्या और कैसे ?
धर्मप्रेमी श्रोताजनो ! साधना के क्षेत्र में इन्द्रियनिग्रह का बहुत बड़ा महत्त्व है । परन्तु इन्द्रिय-निग्रह का यह अर्थ नहीं है कि आँख, कान, नाक आदि इन्द्रियों को पकड़कर कहीं बन्द करके रख देना अथवा इन्द्रियों को मार डालना, काट डालना; लेकिन यह सब न संभव है और न उचित ही है। प्राचीन काल के कुछ साधकों में ऐसी भ्रान्ति पनप रही थी कि अगर आँख ने किसी सुन्दरी स्त्री का मनोहर रूप देख लिया तो उसे फोड़ डाली, अगर किसी के हाथ ने कोई फल चुरा लिये तो उन्हें काट डाले, अगर किसी की जीभ ने कोई अपशब्द बोल दिया तो जीभ ही काट डाली । अथवा जीभ किसी स्वादिष्ट वस्तु को चख न सके, इसके लिए लोहे के तार से मुँह सी लिया । वास्तव में यह सब अज्ञानमूलक क्रियाएँ हैं, इनसे वृत्तियों का शमन या संशोधन नहीं होता, सिर्फ दमन या उत्पीड़न हीं होता है।
किसी व्यक्ति को एक तेज तर्रार घोड़ा दे दिया जाये, परन्तु यदि वह उस घोड़े को, बेलगाम छोड़ दे तो उस सवार को वह पटक देगा, क्षतिग्रस्त कर देगा । अथवा सवार उस घोड़े पर सवार भी हो गया, लगाम भी अपने हाथ में ले ली, किन्तु घोड़े को सुपथ पर चलाने के लिए वह कोड़ों से मार-मार कर उसका कचूमर निकाल दे तो सवारी किस पर करेगा । तीसरा सवार ऐसा है कि वह घोड़े की लगाम अपने हाथ में रखता है, जब भी घोड़ा विपथ पर चढ़ने लगता है, वह लगाम खींचता है और सम्यक् रास्ते पर मोड़ देता है । वह घोड़े को पुचकारता भी है, थोड़ा मारता भी है । बताइए, तीनों घुड़सवारों में से आपको कौन-सा घुड़सवार उपयुक्त जचा ? आप न कहें तो मैं ही कह दूँ । तीसरा घुड़सवार ही आपको उपयुक्त
चता है।