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कामविजय क्यों और कैसे १३७ काम से प्रेरित कई मानव हिंसा और चोरी में भी प्रवत्त होते हैं। ऐसे व्यक्ति सम्पत्ति, ज्ञान और विज्ञान सब कुछ खो बैठते हैं ॥१६।।
देव, उरग (सर्ग), गन्धर्व, तिर्यञ्च और मनुष्य, इस प्रकार सारा संसार काम के पींजरे में बन्द होकर जगत् में विविध क्लेशों का अनुभव करते हैं ॥१७॥
जो मानव कामभोगों में गृद्ध होकर अनेक पाप करते हैं, वे महा भयंकर चतुर्गतिक संसार में परिभ्रमण करते रहते हैं ॥१९॥
यहाँ मैं आद्रक ऋषि की काम-विषयक गाथाओं को क्रम से न लेकर विषयबद्ध क्रम से ले रहा हूं।
वास्तव में देखा जाय तो जब से मनुष्य कामभोगों की तलाश करने लगता है, तभी से वह मन से बार-बार बेचैन हो उठता है। अतः काम की प्राप्ति ही दुखरूप है। प्राप्ति होने के बाद भी जो व्यक्ति कामसेवन से तृप्त होना चाहता है, वह भी घोर भ्रम में है। क्या आग में घी की अधिकाधिक आहुति डालने से वह कभी तृप्त होती है ? इसी प्रकार ज्यो-ज्यों काम वासना की तृप्ति के उपाय किये जाते हैं, त्यों-त्यों वह आग की तरह अधिकाधिक भड़कती है। इसलिए काम की तृष्णा को जड़मूल से समाप्त करने में ही सच्चा सुख है । जिन कामभोगों की प्राप्ति ही दुःखरूप है, उनका वियोग तो प्राप्ति से भी अधिक दुःखदायी है।
जिनका जीवन कामलक्षी रहा है, विश्व उन्हें शीघ्र ही भूल गया, परन्तु जो त्याग, तप, संयम और वैराग्य के पथ पर चले, उनको हजारों वर्ष बीत जाने पर भी लोग भूले नहीं हैं।
कुछ कामग्रह से ग्रस्त व्यक्ति अपने पामर जीवन की भूख मिटाने के लिए असत्य प्ररूपणा करने लगते हैं कि 'कामसुख ही सर्वस्व सुख है, कामभोग से समाधि प्राप्त होती है, वही योग और ध्यान का सन्मार्ग है, अपनी इन्द्रियों को कामभोगों में खुली छोड़ दो, कामेच्छा को दबाओ मत ।'
'साइकॉलोजी एण्ड मॉरल्स' नामक पुस्तक में मनोविज्ञानवेत्ता प्रो० हेडफील्ड ने लिखा है कि 'स्वच्छन्द यौनाचार (काम प्रवृत्ति) का परामर्श देना, व्यक्ति को विनाश के मार्ग की ओर धकेलना है।'
कामप्रेरित मन अपनी वासनापूर्ति में बाधक को दूर करने के लिए हिंसा को अपनाता है । संसार के इतिहास में ऐसी बहुत-सी घटनाएं हुई हैं कि कामी के प्रस्ताव को ठुकराने पर प्रतिहिंसा की ज्वाला उसके हृदय में भभक उठी,
और उसने अपने प्रेमी को या कामपूर्ति में बाधक को समाप्त कर दिया। सती मदनरेखा ने मणिरथ राजा का प्रस्ताव ठुकरा दिया। इस पर उसने अपनी मनोरथ पूर्ति में बाधक अपने छोटे भाई युगबाहु को मार डाला था। कामी