SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१ कामविजय : क्यों और कैसे ? धर्मप्रेमी श्रोताजनो ! कामवासना पर विजय पाना साधक की सबसे बड़ी उपलब्धि है, सर्वश्र ेष्ठ विजय है । संसार में एक से एक बढ़कर निर्भय, साहसी, योद्धा, पहलवान, बलवान एवं शूरवीर आए । ऐसे-ऐसे सुभट संसार में आए. जिनकी धाक से पृथ्वी कांपती थी, जो संग्राम में अपनी तलवारें चमकाते थे, तो लाखों सुभटों को मौत की गोद में सुला देते थे । किन्तु इन सब विजयों के उपरान्त भी वे कामवासना पर विजय नहीं पा सके । योगिराज भर्तृहरि ने ठीक ही कहा है मत्तभकुम्भ-दलने भुवि सन्ति धीराः, केचित् प्रचण्ड - मृगराज-वधेऽपि दक्षाः । किन्तु व्रवीमि बलिनां पुरतः प्रसह्य, कन्दर्प- दर्प-दलने विरला मनुष्याः ॥ इस संसार में ऐसे ऐसे धीरपुरुष हैं, जो मत्त गजराज कुम्भ को विदीर्ण करने में समर्थ हैं। कई ऐसे भी वीर हैं, जो प्रचण्ड सिंह को एक झटके में मार डालने में दक्ष हैं, किन्तु मैं उन बलिष्ठ पुरुषों के सामने साहसपूर्वक कह सकता हूँ कि काम के घमण्ड को चूर-चूर करने में शूरवीर तो इने-गिने मनुष्य ही हैं । इसलिए कहा गया है 'कामविजेता, जगतोविजेता' काम पर विजय पाने वाला जगद्विजयी है । कामवासना का दास विश्व का दास है । बड़े से बड़े योगी, ध्यानी, मौनी और तपस्वी भी काम के आगे हार खा जाते हैं । जो भिक्षा-जीवी हैं, दिन में एक बार और वह भी नीरस आहार करते हैं, जमीनपर सोते हैं, जिनके कुटुम्बीजनों में एकमात्र उनका अपना शरीर है, वस्त्र
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy