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________________ गर्भवास, कामवासना और आहार की समस्या १०७ साधक भी यही सोचे कि जब तक यह शरीर है, तब तक मुझे आत्म-साधना कर लेनी चाहिए। लाक्षाकार की तरह इक्षुकार (गन्ने का रस उकालने वाला) भी अपना लक्ष्य आग के द्वारा सिद्ध करना चाहता है । इसी प्रकार मुनि भी साधना करना चाहता है, उसके लिए शरीर का सहयोग आवश्यक है । जब तक शरीर स्वस्थ है, मुनि साधना में स्थित रह सकेगा । आहार से शरीर समाधिस्थ रहता है यदि शरीर स्वस्थ और समाधिस्थ न हुआ तो मन और बुद्धि भी स्वस्थ और समाधिस्थ नहीं रहेंगे। समाधि और स्वस्थता के अभाव में साधक को आर्तध्यान और रौद्रध्यान होना सम्भव है । अतः मुनि के लिए शास्त्रीय विधान है कि वह योग्य कारण के उपस्थित होने पर अवश्यमेव आहार करे। . इस प्रकार आहार के लिए पूर्वोक्त बातों को तथा इन रूपकों को ध्यान में रखा जाएगा तो मुनि साधना में दृढ़ रहेगा, पापकर्म के बन्धन से अलिप्त रहेगा। रत्नत्रय की साधना करता हआ वह अपने लक्ष्य को भी सिद्ध कर सकेगा । आप लोग भी इसी उद्देश्य को ध्यान में रखेंगे तो पापकर्मों के भार से बहुत हल्के रह सकेंगे।
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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