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१०६ अमरदीप
'से जथा णाम ते साकडिए अक्खमक्खेज्जा, एस मे णो भन्जिरसति, भारं च मे वहिस्सति, एवमेओवमाए समणे णिग्गंथे छहिं ठाणेहि आहार आहामाणे वा णो अतिक्कमेति, वेदणा वेयावच्चे० तं चेव .....।'
से जधा णाम ते जतुकारए इंगालेसु गणिकाय णिसिरेज्जा एस मे अगणिकाए णो विज्झाहिति जतु च ताविस्सामि, एवमेवोवमाए संमणे णिगये हि ठाणेहिं आहारं आहारेमाणे णो अतिक्कमेति, वेदणा वेयाच्चे तं चेव......।'
___से जथा णाम ते उसुकारए तुसेहिं गणिकाच णिसिरेज्जा; एस मे अगणिकाए णो विज्झातिस्सति, उसु च तावेस्सामि एवमेवोवमाए समणे णिग्गथे० सेवं त चेव........'
____ अर्थात - जैसे कि एक गाड़ीवान अपनी गाड़ी के पहिये की धुरी के लिए कहता है-मेरी गाडी की यह धूरी नहीं टूटेगी तो यह मेरा भार भी ढो सकेगी। इसी उपमा से मुनि का आहार उपमित है । श्रमण निर्ग्रन्थ यदि इन ६ कारणों से आहार करता है तो वह धर्म मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता।
वे ये हैं -वेदना, वैयावृत्य, ईर्यासमिति, संयम, प्राणनिर्वाह और धर्मचिन्तन।'
'जैसे एक लखारा कोयलों में आग प्रज्वलित करता है और विचार करता है कि यह आग बुझ न जाए, उससे पहले ही मैं लाख को तपा लूँगा। इसी उपमा से मुनि के आहार को उपमित किया है । श्रमण निग्रंथ छह कारणों से आहार करता हुआ इत्यादि पूर्ववत् ।'
. _ 'जैसे कि एक इक्ष कार (गन्ने का रस उकालने वाला) तुस (भुस्से) से अग्नि प्रज्वलित करता है और सोचता है कि ईंधन बुझ न जाए, तब तक में इक्ष रस को गर्म कर लूगा। इसी प्रकार श्रमण निन्थ आहार का सेवन करता है इत्यादि पूर्ववत् ।'
यहाँ तीन रूपकों द्वारा मूनि को आहार किस प्रकार ग्रहण करना चाहिए इसकी प्रेरणा दी गई है।
साधक की देह एक गाड़ी है । जैसे गाड़ीवान यह सोचता है कि गाड़ी (धुरी से) सुरक्षित रहेगी तो मेरा भार यथास्थान पहुँच सकेगा। इसी प्रकार मुनि भी यही सोचे कि शरीर सुरक्षित रहेगा तो धर्मपालन आदि कार्य हो सकेंगे । अतः पहले बताए हुए छह कारणों से वह आहार करता है।
मुनि के आहार ग्रहण का लक्ष्य शरीर-पूष्टि का न रहकर शरीरनिर्वाह का रहे। जैसे लखारा ईंधन को प्रज्वलित करते समय यह सोचता है कि ईंधन बुझे, उससे पहले ही मैं अपना कार्य सम्पन्न कर लू । इसी प्रकार