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________________ गर्भवास, कामवासना और आहार की समस्या धर्मप्रेमी श्रोताजनो! __एक प्रश्न दार्शनिकों के सामने बार-बार उठा करता है कि अपने आप में आत्मा तो शुद्ध-स्वरूप है देहातीत है, फिर यह पुनः पुनः गर्भवास में क्यों आता है ? क्यों शरीर धारण करता है ? और किस कारण से पापों में प्रवृत्त होता है ? __आज हम इसी प्रश्न पर विचार करेंगे । प्रस्तुत पच्चीसवै अध्ययन का प्रारम्भ अर्हतर्षि अम्बड और यौगन्धरायण की विचारचर्चा से होता है। अम्बड अर्हतषि भगवान महावीर स्वामी के वंदिक उपासकों में एक थे जो अम्बड परिव्राजक के नाम से विख्यात हैं, तथा औपपातिक सूत्र एवं भगवतीसूत्र में जिनका विशद वर्णन है। उनकी वेशभूषा वैदिक संन्यासियों की-सी थी, व्रत-नियमों का वे दृढ़ता से पालन करते थे। अन्तर् से वे भगवान् महावीर के अनन्यभक्त थे । जीवन के सन्ध्याकाल में वे विचार और व्यव. हार से प्रभू महावीर के सर्वव्रती शिष्य बन गए थे। उससे पूर्व उन्हें विविध वैक्रिय-लब्धियाँ भी प्राप्त थीं। प्रस्तुत अध्ययन के उपदेष्टा अर्हतर्षि अम्बड वे ही अम्बड परिव्राजक हैं या दूसरे कोई अम्बड हैं ? यह विचारणीय प्रश्न है। परन्तु प्रस्तुत अध्ययन का अनुशीलन करने से तथा आगे अब्रह्मचर्य और परिग्रह का एक साथ निरूपण होने से ये अम्बडऋषि भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा के मालूम होते हैं। गर्भवास से विरक्ति हाँ, तो अम्बड़ अर्हतर्षि और यौगन्धरायण की इस धम चर्चा में सर्वप्रथम अम्बड परिव्राजक यौगन्धरायण से पूछते हैं --
SR No.002474
Book TitleAmardeep Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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