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________________ ५८ अमर दीप जो माया करे उसे रोना पड़ेगा । रोना पड़ेगा, दुःख ढोना पड़ेगा, नारी होना पड़ेगा । पापों का प्रेमी माया करेगा, प्रपंचों से वह तो जरा न कहेगा सही, किन्तु करेगा नहीं, उसको पाखण्ड ढोना पड़ेगा । डरेगा । रोना पड़ेगा ॥ पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन में भी माया का फल बहुत कड़वा माना गया है । 'माया मित्ताणि नासेइ' कहकर भगवान् ने कहा है, कि जिसमें माया होती है, उसके प्रति अविश्वास बढ़ता जाता है । अविश्वास के कारण मायावी के साथ मित्रता टूट जाती है । विश्वासघातक होने के कारण मायावी मनुष्य को आगामी जन्म में स्त्रीपर्याय मिलती है । तीर्थंकर भगवती मल्लिनाथ का पूर्वभव इस तथ्य का साक्षी है । पूर्वभव में वे एक साधु थे और अन्य साधुओं के साथ-साथ वे भी आत्मशुद्धि एवं कर्म - निर्जरा के लिए तपस्या करते थे । कर्ममुक्ति की दृष्टि से तप जैसे पवित्राचरण के साथ-साथ मल्लिनाथजी के जीव ने कपट का आचरण शुरू कर दिया, इस विषम भाव से कि अपने साथियों से बढ़कर फल प्राप्त कर सकें । इस जरा से कपटाचरण के फलस्वरूप उन्हें स्त्रीलिंग प्राप्त हुआ । इससे भी आगे बढ़कर कहूँ तो माया एवं गूढ़माया करने वाले मानव को तिर्यञ्चयोनि मिलती है । तत्वार्थ सूत्र में कहा है 'माया तैर्यग्योनस्य' (६/१७) माया, गुढ़माया, कपट, छल-छम, दम्भ आदि सब तिर्यत्रगति में निकृष्ट योनि के कारण हैं । आध्यात्मिक क्षेत्र में भी माया का बहुत कड़वा फल बताया है । यह तो स्पष्ट है कि माया के मैल में लिपटा हुआ मन अपनी निर्मलता को खो देता है, छलों की आंधियों में वह प्रकाशहीन बन जाता है, अस्थिर और अशान्त बन जाता है । जैसे- मनभर दूध में खटाई पड़ते ही वह फट जाता है, इसी प्रकार एक कपट से हजारों सत्य का नाश हो जाता है । जहाँ कपट होगा, वहाँ आलोचना -- आत्मा पर लगी हुई अशुद्धियों का प्रकटीकरण - शुद्ध नहीं होगी, न ही प्रतिक्रमण, निन्दना एवं गर्हणा होगी । ऐसी स्थिति में आत्मशुद्धि नहीं हो सकती । अंगिरस ऋषि कहते हैंदुपचिणं सपेहाए, अणायारं च अप्पणो । अवतो सदा धम्मे, सो पच्छा परितप्पति ॥ ॥ (अपनी दुर्वासना से अर्जित) दुष्प्रचीर्ण कर्म और अपने अनाचार के प्रति देखता हुआ भी जो जान-बूझकर उपेक्षा करता है तथा ( शुद्ध हृदय
SR No.002473
Book TitleAmardeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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