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अमर दीप
है। परन्तु तुमने धन का दुरुपयोग किया। व्यापारियों, सम्बन्धियों और मुझे ठगने के अपराध की सजा यह है कि तुम्हें सिर से पैर तक पीटा जाए
और राजमहल में चोरी करने के अपराध में तुम दोनों को शूली पर चढ़ा दिया जाए।"
सजा सुनकर हसन और फातिमा दोनों घिघियाने लगे। इससे खलीफा को उन पर रहम आ गया। उन्होंने हुक्म दिया कि 'बेईमानी और धोखेबाजी से कमाये हुए धन को इन दोनों के गले में बाँध कर इन्हें अपने घर पहुँचाया जाए।'
__इसके बाद खलीफा ने सारे शहर में घोषणा करवा दी कि 'कोई भी व्यक्ति इन दोनों को धन के बदले खाने-पीने और पहनने का सामान न दे । जो व्यक्ति इस हुक्म का पालन नहीं करेगा, उसे फाँसी की सजा दी जाएगी।'
घर आने पर हसन और उसकी बीबी बहुत ही खुश थे कि धन भी मिला और जान भी बची। पर दो-चार दिनों में उन्होंने सोने के कुछ सिक्के देकर खाने-पीने का सामान खरीदना चाहा, परन्तु सभी दुकानदारों ने उन्हें सौदा देने से साफ इन्कार कर दिया । जब उन्हें कुछ भी सामान नहीं मिला तो हैरान होकर वे पुनः खलीफा की अदालत में हाजिए हुए। उन्होंने सारी सम्पत्ति खलीफा के चरणों में रख कर उनसे. विनम्र प्रार्थना की - "हजूर ! हमारी यह सम्पत्ति लेकर जरूरतमन्दों में बाँट दीजिए ताकि रैयत को यह ज्ञात हो जाए कि दौलत को दबाकर रखने से नहीं, किन्तु सदुपयोग करने से सुख मिलता है।"
धन पर अहंता-ममता की छाप जब लग जाती है तो व्यक्ति सबके सामने प्रशंसा करता है 'मैंने ही इतना धन कमाया है। यह मेरा धन है।" इस प्रकार संग्रह करके मनुष्य स्वयं दुःखी होता रहता है, परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति द्रोह करता है, उसकी अपकीर्ति होती है, राजदण्ड भी मिलता है। राजस्थान में एक कहावत है--
खा गया सो खो गया। दे गया सो ले गया।
जोड़ गया सिर फोड़ गया ॥ वास्तव में, धन का अनाप-शनाप संग्रह ही सबसे अधिक सिरदर्द है । वह यहाँ भी कष्ट देता है, परलोक में भी त्रास देता है और वर्तमान में भी फजीहत होती है । ऐसे धन को जोड़-जोड़ कर रखने और रात-दिन उसके रक्षणादि में ही लगे रहने वाले मम्मण सेठ की क्या दशा हुई थी ? वह