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अमर दीप
बड़े आश्चर्य की बात तो यह है कि मनुष्य जानता है कि धन, परिवार, सत्ता आदि सब नाशवान हैं, फिर भी वह इनके पीछे अपनी शान्ति खोता रहता है, दुनिया भर के दुख-दर्द मोल लेता रहता है ।
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एक राजा कहीं युद्ध के लिए जा रहा था । 'रास्ते में एक महात्मा मिल गये । राजा ने महात्मा को नमस्कार किया, महात्मा ने भी पलट कर राजा को नमस्कार किया। राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ । उसने पूछा - आपने मुझे नमस्कार क्यों किया ?
महात्मा जी ने कहा- आपने मुझे क्यों नमस्कार किया ?
राजा - क्योंकि आप संसार की मोह-माया त्यागकर ईश्वर भजन में लगे हैं । आप त्यागी हैं ।
महात्मा - तुम मुझसे भी बड़े त्यागी हो । राजा - वह कैसे ?
महात्मा - तुम यह जानते हो कि संसार की मोह-माया झूठी है, फिर भी इसके पीछे पड़कर ईश्वर को छोड़ दिया है, तो बड़ा त्याग किस का हुआ ?
हाँ, तो भोगों को दुःखकारी जानकर भी जो इनमें फँसे रहते हैं, उनको क्या कहा जाय ? ऋषि कहते हैं
छाछ में गिर कर दूध नष्ट हो जाता है, इसी प्रकार ( विषयों के साथ) राग और द्व ेष के मिलने से साधक के ब्रह्मचर्य का तेज समाप्त हो जाता है।
इन लेपों से आत्मा को बचाओ
वस्तुतः पापकर्म में लिपटाने वाले इन पापस्थानों से तथा विषयभोगों की आसक्ति से साधक को सदैव दूर रहना चाहिए। इनसे सतत सावधान रहना चाहिए। ज्यों ही इनमें से कोई चोर आत्मा में प्रवेश करने लगे, साधक को तुरन्त सावधान हो जाना चाहिए। जैसे जरा-सी असावधानी से बिजली का करंट लग जाता है और उससे तत्काल मृत्यु हो जाने की सम्भावना रहती है, इसी प्रकार साधक की जरा सी असाव धानी से इनमें से किसी भी पापकर्म का करेंट लग जाता है, और वही साधक की भावमृत्यु है ।
अतः आत्मा को परमात्मा - शुद्ध आत्मा का रूप देने के लिए इन लेपों से सतत बचाना अनिवार्य है ।