________________
१६ अमर दीप पण्डित बोला-"राजन ! चौथा चरण मैंने बनाया है। मैं आया तो था चोरी करने, किन्तु आपकी गर्वस्फीत श्लोकरचना सुनकर मेरे से रहा नहीं गया । अब आपको जो भी सजा देना हो, दीजिए।" राजा ने चोर बने हुए पण्डित को पास बुलाकर कहा- "आप दण्ड के नहीं, पुरस्कार के पात्र हैं । आपने तो मेरे गर्व को ही चुरा लिया है।"
राजा ने उसे इनाम दिया और अपना घनिष्ठ मित्र बना लिया। उसी दिन से राजा के जीवन में विलासिता, अभिमान और प्रमाद के बदले प्रजापालन और जनसेवा साकार हो उठी।
यह था-सद्वचन-श्रवण करने का अचूक प्रभाव ! कहा भी हैएक वचन श्री सद्गु रुकेरा, जो बसे ते दिलमाय रे प्राणी।
नरक निगोद में ते नहिं जावे, इम कहे जिनराय रे प्राणी ॥
वास्तव में, धर्म का या महात्माओं का एक सद्वचन भी मनुष्य को नरक या निगोद जैसी दुर्गति से बचा सकता है। उसके जीवन में सदा. बहार आ जाती है।
. राजगृहवासी रोहिणेय डाक के पिता लोहखुर ने मरते समय यह शिक्षा दी थी कि, “बेटा ! किसी भी साधु का धर्मोपदेश न सुनना।" .
किन्तु एक बार वह राजगृह की ओर आ रहा था, तभी मार्ग में भगवान् महावीर का धर्मोपदेश हो रहा था। रोहिणेय कानों में अंगुलियाँ लगाकर तेजी से भागने लगा। जब वह समवसरण के ठीक सामने से गुजरने लगा, तभी एक काँटा पैर में लग गया। वह नीचे झुक कर हाथों से काँटा निकालने लगा, उसी समय भगवान के मुख से निकले हुए ये शब्द कानों में पड़ गए–'देवों के पैर पृथ्वी को नहीं छूते, उनकी पलकें नहीं झपतीं, उनकी पुष्प-मालाएँ नहीं कुम्हलातीं तथा उसके शरीर में पसीना नहीं आता।" रोहिणेय न सुनना चाहते हुए भी अनमने भाव से इन शब्दों को सुन चुका । आगे चलकर ये ही शब्द उसको बन्धन में डालने के लिए अभयकुमार द्वारा रचे गए षडयंत्र को निष्फल बनाने में सहायक हुए और वह जीवन भर भगवान् के धर्मवचनों को सुनकर उन पर अमल करने के लिए डाक से साधु बन गया। रोहिणेय के जीवन को आमूलचूल बदलने में धर्मवचन-श्रवण ने अद्भुत काम किया।
बन्धुओ ! इसीलिए अर्हतर्षि नारद ने श्रोतव्य का श्रवण करने के लिए बार-बार जोर दिया है । आप भी मोक्ष के प्रथम सोपान श्रोतव्य - श्रवण पर मुस्तैदी के साथ पैर जमाइए और अध्यात्म के अन्तिम शिखर-- मोक्ष तक पहुंचने का पुरुषार्थ कीजिए।