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________________ २५४ अमरदीप प्रस्तुत गाथा में तीन उदाहरण देकर आत्मा को पाप से अथवा 'स्व' को पर से हटाने या अलग करने की प्रेरणा की गई है। पक्षी अपनी तीखी चोंच से फल को और कभी-कभी गुठली तक को छेद देता है, जिससे फिर वह उग नहीं सकती, राजनायकों का आपसी वैर राज्य के टुकड़े-टुकड़े कर देता है, तथा कमल जल में पैदा होकर भी जल से अलिप्त रहता है, वह अपने पत्ते पर जलबिन्दुओं को पथक कर देता हैं। उसी प्रकार जागृत आत्मा अनादि कर्मपुद्गलों को आत्मा से पृथक कर देता है। इस विवेचन का सार यह है, मनुष्य अज्ञान और मोह में फंसकर पापकर्म करता है, उसकी पीड़ा से कराहता है किंतु छूटकारा तभी मिलेगा, जब ज्ञान और वैराग्य का चिन्तन कर समता और शान्ति धारण करेगा।
SR No.002473
Book TitleAmardeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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