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२५० अमरदीप चलाते हैं. जो चोरी, डकैती करके दूसरों का धन हरण करते हैं, या जा ठगी, धोखेबाजी, या बेईमानी करके दूसरों से पैसे ऐंठ कर खुश होते हैं, जो निर्दोष, निरपराध व्यक्तियों का कत्लेआम करते हैं, राज्य वृद्धि के लिए युद्ध
छेड़कर नरसंहार कराते हैं, ऐसे लोग भले ही पाप करते समय खुश हो लें, परन्तु जब उन पाप कर्मों के परिणाम सामने आयेंगे, तब उन्हें घोर पश्चात्ताप होगा, तब वे भयंकर आर्तनाद करेगे, तब भी उस पाप कर्म के फल से छुटकारा नहीं मिलेगा।
कई बार तो, पापकर्म का फल हाथोंहाथ मिल जाता है। मैंने 'कल्याण' (मासिक पत्र) में एक सच्ची घटना पढ़ी थी वह इस तथ्य को समझने में बहुत उपयोगी होगी।
मेरठ के निकट पांचलो गाँव में जाट परिवार के दो भाई रहते थे। वे खेती करते थे और आनन्द से जीवन यापन करते थे। एक दिन दूसरे गाँव से दो सम्पन्न किसान दो बैल खरीदने के लिए उस गाँव में आये। पूछते-पूछते वे इन दो भाइयों के यहाँ आ पहुंचे। दोनों भाइयों ने उन्हें बैल की जोड़ी बताई उन्हें बैल पसंद आ गए। १२००) रुपये में सौदा तय हो गया । आगन्तुकों ने कहा-हम रातभर आपके यहाँ ही ठहरेंगे। सुबह आपको रुपये देकर दोनों बैल ले जाएँगे।' दोनों भाइयों ने स्वीकार किया। उन्होंने आगन्तुकों को भोजन कराया और दोनों के सोने के लिए दो खाट लगाकर उन पर बिछौने बिछा दिये। दोनों आगन्तुक किसान निश्चितता से सो गए। किन्तु उन जाट भाइयों के मन में पाप जागा। मन ही मन कुविचार आया कि इन दोनों के पास १२००) रुपये तो हैं ही, और भी रकम होगी। अतः क्यों न इनका सफाया कर दिया जाए। जिससे बैल भी बचगे और रुपये भी आ जाएँगे।' इस कुविचार को अमली रूप देने के लिए उन्होंने अपनी पत्नियों से कहा
___ "देखो, हम गन्ने के खेत में इन दोनों को मारने के बाद गाड़ने के लिए गड्ढा खोदने जाते हैं । जब गड्ढा खुद जाएगा, तब हम कुछ जोर से कहेंगे-'राम राम ! बस, यह सुनते ही तुम दोनों इनकी गर्दन पर छुरी फेर देना और जब ये तड़फ कर शान्त हो जाएँ, तब इनकी जेबें टटोल कर सारी रकम निकाल लेना । हम दोनों आकर इनकी लाश को ठिकाने लगा देगे।" दोनों महिलाओं ने इस पापकर्म के लिए हामी भर ली। रात के कोई ग्यारह बजे थे। दोनों भाई गन्ने के खेत में जाकर गड्डा खोदने लगे । संयोगवश