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अमर दीप
(१) उत्तराध्ययन, (२) दशाश्रुतस्कन्ध, (३) कल्प ( बृहत्कल्प सूत्र ) ( ४ ) व्यवहार सूत्र, (५) निशीथ सूत्र, (६) महानिशीथ सूत्र, (७) ऋषिभाषित सूत्र इत्यादि ।
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समवायांग सूत्र के चवालीसवें समवाय में तो और भी स्पष्ट रूप से इस सूत्र का परिचय देते हुए कहा है
चोयालीसं अज्झयणा दिलो-चु- भासिय पण्णत्ता । दिय - लोय-चुयाणं इसीगं चोयालीसं इसिभा सिज्झयणा पण्णत्ता ॥ चवालीस अध्ययन देवलोक से च्युत ऋषियों द्वारा भाषित हैं । अर्थात् — देवलोक से च्युत, चवालीस ऋषियों द्वारा भाषित ( कथित) अध्ययनों के कारण इसे 'ऋषिभाषित - अध्ययन सूत्र' कहा गया है ।
यहाँ एक प्रश्न उपस्थित होता है कि यहाँ चवालीस ऋषियों के द्वारा भाषित प्रवचनों को 'ऋषिभाषित सूत्र' नाम दिया गया है, परन्तु इस 'ऋषिभाषित - सूत्र' में तो पैंतालीस अध्ययन हैं, फिर इस कथन की संगति कैसे होगी ?
इसका समाधान करते हुए नन्दीसूत के वृत्तिकार आचार्य मलयगिरि ने कहा है – उक्त चवालीस ऋषि तो देवलोक से आये हैं, किन्तु हो सकता है, पैंतालीसवें ऋषि किसी अन्य गति से आए हों, अतएव उनका उल्लेख यहाँ न किया हो । जो भी हो, यह शास्त्र बत्तीस सूत्रों की ही तरह, नन्दीसूत्र, समवायांगसूत्र आदि द्वारा प्रमाणित है ।
मूलभाष्य में आचार्यश्री चार अनुयोगों की व्याख्या करते हुए इसिमासियाई की गणना 'धर्मकथानुयोग' में करते हैं । जैसे कि वहाँ कहा गया है
कालियसुअं च इसि भासियाई, तइयामसूरपन्नत्ति । सव्वोअं दिठिवाओ, चउत्थो होइ अणुओगो ||
इसि भासियाई (ऋषिभाषित सूत्र ) कालिक है । कालिक श्रुत में प्रथम चरण करणानुयोग है, फिर द्वितीय अनुयोग है - धर्मकथानुयोग, इसमें 'ऋषिभाषित' की गणना की गई है। गणितानुयोग में सूर्यप्रज्ञप्ति की और द्रव्यानुयोग में दृष्टिवाद ( १२वां अंग) की गणना की गई है ।
यहाँ तो इतना ही बताना पर्याप्त होगा कि नन्दीसूत में विभिन्न तीर्थंकरों के शासन में हुए प्रत्येकबुद्धों की संख्या दी है । इनके द्वारा रचित शास्त्रों को सम्यक् श्रुत में परिगणित किया गया है । अतएव इस शास्त्र को तीर्थंकर वचनों से सम्मत मानने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए ।
'गुणिषु प्रमोदम्' इस सत्र के अनुसार हमें प्रमोद भावना के सन्दर्भ में गुणों का उपासक बनना चाहिए । सत्य कहीं से भी मिलता हो, अनेकान्त