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अमरदीप .
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रहना सकाम तप नहीं, जैन दृष्टि से अकाम तप है। किन्तु जिस तप आदि साधना के पीछे विवेक की मशाल जल रही है, साधक के रग-रग में तप की प्रेरणा है, ऐसा तप स्वेच्छाकृत आत्मसाधना का, अन्तिम लक्ष्य प्राप्ति का या साध्यसिद्धि का कारण बन सकता है।
निष्कर्ष यह है कि सकाम और अकाम दोनों ही साधनाएँ मोक्षहेतुक हो सकती है, बशर्ते कि उनके पीछे सदुद्देश्य हो, अन्यथा दोनों ही नरकहेतु हैं । अतः क्रिया का बाह्य रूप अन्तःशुद्धि का मापदण्ड नहीं हो सकता। शुद्ध अन्तर्भावना ही शुद्ध क्रिया का मापदण्ड है।