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________________ १७ । शुद्ध-अशुद्ध किया का मापदण्ड । धर्मप्रेमी श्रोताजनो ! आज मैं ऐसे पवित्र और प्रामाणिक जीवन के विषय में चर्चा करूगा, जिसमें शुभ क्रिया के साथ शुभ निष्ठा होनी अनिवार्य है। साधना या धर्मक्रिया के पीछे शुभनिष्ठा हो कई लोग कहा करते हैं, हमें कार्य सिद्ध करने से मतलब है, उस कार्य के पीछे चाहे हमारे विचार कैसे भी हों। परन्तु जैनदर्शन इस बात से स्पष्ट इन्कार करता है कि आपका साध्य-कार्य तो शुभ हो, किन्तु उसके पीछे विचार भले ही अशुभ हों। सामायिक, प्रतिक्रमण, पौषध, तप, जप, भक्ति, नियम, त्याग-प्रत्याख्यान, व्रताचरण आदि किसी भी साधना के पीछे यदि निष्ठा या विचार शुभ नहीं है, तो भगवान् ने उस साधना को यथार्थ नहीं माना है । उदाहरण के तौर पर-सामायिक को ही ले लीजिए। आप जब सामायिक करते हैं, तब आपको द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव शुद्धि का विचार करना अनिवार्य है। साथ ही सामायिक के ३२ दोषों से (१० मन के, १० वचन के और १२ काया के दोषों से) बचना भी अनिवार्य बताया है। सामायिक व्रत के पांच अतिचारों (दोषों) में भी आता है सामाइयस्स सइ - अकरणयाए । सामाइयस्स अणवटि व्यस्स करणयाए ॥ अर्थात् -'मैंने सामायिक ठीक ढंग से स्मृति रखकर न की हो । सामायिक अव्यवस्थित चित्त से की हो।' इसी प्रकार पौषधव्रत की साधना के विषय में सावधान किया गया है . पोसहस्स सम्म अणणुपालगया।
SR No.002473
Book TitleAmardeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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