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जीवन की सुन्दरता १६१ (३) तीसरा व्यक्ति कुछ इसलिए देता है कि समाज में फैली हुई विषमता नष्ट हो।
(४) चौथे व्यक्ति की धारणा यह है कि 'सम्पत्ति मेरी थी ही कब ? संसार में आया जब कुछ नहीं था, जाऊँगा तब कुछ भी साथ नहीं जाएगा, फिर मैं अपना अधिकार क्यों मान ! तेरा तुझको देने में मेरा लगता ही क्या है ?
इन चारों में पहले दो लोभी हैं-एक है कीर्ति का और दूसरा है स्वर्ग का। तीसरा भी देता है, पर सम्पत्ति पर अपना स्वामित्व या अधिकार नहीं छोड़ता, किन्तु चौथा सम्पत्ति पर अपना अधिकार भी नहीं मानता।
बन्धुओ ! कर्मक्षय करने के लिए दान के पीछे चौथी वृत्ति का आश्रय लेना चाहिए। भाग्य से आपके पास जो कुछ है, उस पर भी ममत्व मत रखिए, और दान देना है तो यह सोचकर दीजिए-मेरा तो इसमें कुछ भी नहीं है, जो है वह समाज का है।
"तेरा तुझको सोपते क्या जायेगा मेरा।" समाज का धन, राष्ट्र की संपत्ति यदि उसी को सौप रहा हं तो इसमें मेरा क्या महत्व है ? इतनी उदार और निष्काम वृत्ति से देना ही वास्तविक दान है।
इस प्रकार कर्मक्षय कर लेने पर भवपरम्परा समाप्त होगी। आत्मा के स्वाभाविक गुण प्रकट होंगे, जिनसे उसका सौन्दर्य चमक उठेगा।