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________________ जन्म-कर्म - परम्परा की समाप्ति के उपाय १३५ (४) धातु (तेजाब आदि) के संयोग से स्वर्णमल दूर होता है, तथैव सम्यक्तप से आत्मा पर लगे हुए कर्मों को नष्ट करके आत्मा को विशुद्ध बनाओ । संक्षेप में, आत्मा की शुद्धि के सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र (सम्यक् ध्यान) और सम्यक्तप, ये चार साधन हैं । आत्मा पर कर्मों का मैल चढ़ा हुआ है। सम्यग्दर्शन से अनादिकालीन मिथ्यात्व का मैल नष्ट हो जाता है, जिसके कारण आत्मा कर्मों के भार से आक्रान्त रहता था । इसी प्रकार सम्यग्दर्शनयुक्त सम्यग्ज्ञान से आत्मा स्वपर का भेदविज्ञान कर सकता है, वही पापकर्म रूप परभाव को आत्मा पर से हटाने के लिए प्रयत्नशील होता है । सम्यक्त्व से युक्त साधक धर्मध्यान एवं शुक्लध्यान से कर्म मैल को हटा कर आत्मा को शुद्ध करता है और सम्यक्तप से समस्त कर्म - मैल को जला कर आत्मा को शुद्ध स्वभावयुक्त बना देता है । सिद्धि और सिद्ध आत्माएँ सम्पूर्ण कर्मक्षय होने की प्रक्रिया किस प्रकार होती है ? तथा सिद्ध आत्मा सिद्धि प्राप्त करने के पश्चात् कैसी स्थिति में होते हैं ? इस विषय में इस अध्ययन की अन्तिम गाथाएँ बहुत ही मननीय हैं - आवज्जती समुग्धातो जोगाणं च निरुम्भणं । अनिट्टी एव सेलेसी सिद्धी कम्मक्खओ तहा ॥ २८ ॥ णावा व वारिमज्झमि खीणलेवो अणाउलो । रोगी वा रोगणिमुक्को, सिद्धो भवति णीरओ ॥ २६ ॥ पुव्वजोगा असंगत्ता, काऊ वाया मणो इ वा । एगतो आगती चेव कम्माभावा ण विज्जती ॥३०॥ परं णावग्गहाभावा, सुही आवरणक्खया । अस्थिक्खणावा, निच्चो सो परमो धुवं ॥ ३१ ॥ दव्वतो खित्ततो चेव कालतो भावतो तहा । चिचाणिच्चं तु विष्णेयं संसारे सम्बदेहिणं ॥ ३२॥ गंभीरं सव्वओभद्दं सव्वभाव वि भावणं । धण्णा जिणाहितं मग्गं सम्मं वेदेति भावओ ||३३||
SR No.002473
Book TitleAmardeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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