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________________ १२४ अमर दीप -जो आठों कर्मों को तपाता है (उनकी निर्जरा करता है) वह तप है। ऐसा ही लक्षण दशवैकालिक, जिनदासचूणि में भी किया गया है। पंचाशत्, नियमसार, द्रव्यसंग्रह, प्रवचनसार आदि ग्रंथों में 'विषयों की इच्छा के निरोध' को तप कहा है। ___ सर्वार्थसिद्धि में कर्मक्षय की प्रक्रिया को तप कहा गया है। साथ ही वहीं इसे (आत्म) अभ्युदय का कारण भी बताया गया है तपोऽभ्युदयकर्मक्षयहेतुः यों विभिन्न आचार्यों ने विभिन्न अपेक्षाओं से तप के विभिन्न लक्षण बताए हैं । लेकिन मुझे सबसे अच्छी परिभाषा यह लगती है आत्मशोधनी क्रिया तपः -आत्मा की विशुद्धि करने वाली क्रिया तप है। यह परिभाषा किसी प्राचीन आचार्य की दी हुई है। इसमें आध्यात्मिक दृष्टिकोण स्पष्ट है। साथ ही इसमें कर्मक्षय, आत्माभ्युत्थान, इच्छानिरोध आदि सभी बातें गर्भित हैं। क्योंकि आत्मा की विशुद्धि कहो या कर्मों का क्षय बात एक ही है, सिर्फ अपेक्षाभेद है। तप के भेद तप के १२ भेद हैं जिनमें से ६ अन्तरंग हैं भौर ६ बाह्य । उत्तराध्ययन सूत्र में इनके नाम इस प्रकार गिनाये गये हैं सो तवो दुविहो वुत्तो बाहिरब्भन्तरो तहा। बाहिरो छविहो वुत्तो एवमब्भन्तरो तवो॥ अणसणमूणोयरियाभिक्खायरिया य रसपरिच्चाओ। कायकिलेसो संलीणया य बज्झो तवो होइ ।। पायच्छित्त विणओ वेयावच्चं तहेव सज्झाओ। झाणं च विउस्सग्गो एस अब्भिन्तरो तवो॥-उत्तरा० ३०/७-६ अर्थात् तप दो प्रकार का है-(१) बाह्य और (२) अन्तरंग । बाह्य तप हैं-(१) अनशन, (२) ऊनोदरी, (३) भिक्षाचर्या, (४) रस-परित्याग, (५) कायक्लेश और (६) प्रतिसंलीनता, तथा अंतरंग तप हैं–७' प्रायश्चित्त, (८) विनय, (६) वैयावृत्य, (१०) स्वाध्याय, (११) ध्यान और (१२) व्युत्सर्ग। (१) अनशन- जैसा कि आप सभी जानते हैं अनशन का अर्थ है, उपवास । यह एक दिन से लेकर छह महीने तक का होता है । इसमें (१)
SR No.002473
Book TitleAmardeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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