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जन्म और कर्म का गठबन्धन १०६ विविधता का कारण ईश्वरेच्छा बताता है, जबकि जैन दर्शन स्वयं प्राणी को ही इसके लिए उत्तरदायी बताता है । जैसे मयूर के अंडे से मयूर ही पैदा होता है, आम की गुठली से भी आम ही होता है इसी प्रकार जिसके जैसे कर्म होंगे, उसे वैसा ही शरीर मिलेगा। उसी के अनुरूप देहधारियों को नाना प्रकार के भोग मिलेंगे । विविधता और विचित्रता आत्मा के द्वारा पूर्वोपार्जित शुभाशुभ कर्मों पर आधारित है।
हर व्यक्ति की शारीरिक रचना, शक्ति और संकल्प (मनोभाव) अलग अलग होते हैं । आत्मा के जैसे संकल्प होंगे, उसी दिशा में उसकी शक्ति लगेगी। संकल्प और शक्ति से ही मानव का जीवन-निर्माण होता है। सत्संकल्प और शक्ति का सत्प्रयोग मानव का सद्रूप में ढालते हैं। आत्मा सत्संकल्प करता है तो वोर्य शक्ति उसकी सहचारिणी बन जाती है। और वही शक्ति एवं सत्संकल्प महावीर और हनुमान जैसे महामानव बनाते हैं। असत्संकल्प और असत्शक्ति (शक्ति का दुरुपयोग) मानव को दानव बना देती है। जैसे रावण को उसके दुःसंकल्प ने ही रावण बनाया।
कर्मों का आगमन क्यों और कैसे ? एक व्यक्ति मिर्च खाए और चाहे कि मुह न जले, यह हो नहीं सकता। आप अपने घर का दरबाजा खुला रखें और फिर कहें कि बाहर का कचरा या धूल न आए, यह भी असंभव है। आप कभी यह सोचते हैं कि आप प्रमादवश अपनी आत्मा के द्वार--आस्रव द्वार खुले रखते हैं, जिनसे कर्मों का धूल या कचरा बहुत तेजी से घुस जाता है। यह भी सोचिये कि आपकी आत्मा में कितनी जगह से कर्मों का प्रवाह आ रहा है ? आप बारीकी से आत्म-निरीक्षण करें तो पता लगेगा कि प्रतिक्षण आत्मा में अनन्तअनन्त कर्मों का प्रवाह आ रहा है। जब इसका फल भोगना पड़ेगा तब आपको अत्यन्त कष्ट का अनुभव होगा । अगर आपको आत्मा में कर्मों के प्रवेश होने का भय है तो आप इन द्वारों को तत्काल बन्द कीजिये। इन द्वारों को बन्द किये बिना कर्मों का प्रवाह रुक नहीं सकता। इन प्रवाहों के रुके बिना कर्मों की भर्ती कम नहीं होगी। भले ही आप कर्मों की निर्जरा करते हों, परन्तु पहले आपका कार्य होगा-इन आस्रव के द्वार बन्द करना। मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग, ये पाँच आस्रव द्वार हैं, कर्मों के आगमन के दरवाजे हैं। बाहर आंधी चल रही और कमरे में धूल जमी हुई है, ऐसे समय में समझदार व्यक्ति पहले कमरे का दरवाजा बन्द करता है, ताकि बाहर से धल आनी बंद हो जाए, उसके बाद वह