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________________ ( ६ ) है। कुछ दुखी हैं। फिर इस पर विचार करना है - सुखी है तो क्यों है ? दुखी हैं तो क्यों ? बुरा है तो क्यों है ? भला है तो क्यों है ? यह जीवन क्या है ? जगत क्या है ? मैं इस दुनियाँ में आया हूँ तो मुझे क्या करना है, यह जिन्दगी कितने दिन की है ? जब मनुष्य यह शरीर छोड़कर जाता है तो कहाँ जाता है ? मर कर मिट्टी का पुतला यहीं खत्म हो जाता है या कोई ऐसा तत्व है, जो मर कर भी 'अमर' रहता है ? इन सब बातों पर विचार चिन्तन करना मनुष्य का स्वभाव है । वह सदा सदा से इन बातों पर विचार-मनन करता आया है । यह विचार ही 'दर्शन' कहलाता है । दर्शन की उत्पत्ति जिज्ञासा से होती है । जिज्ञासु मनुष्य दार्शनिक बनता है । भारत की मिट्टी की यह विशेषता है कि यहाँ का मानव प्रारंभ से ही जीवन और जगत के विषय में सोचता आया है । साधारण से साधारण दीखने वाला व्यक्ति भी यहाँ 'आत्मा' 'परमात्मा' लोक परलोक कर्म और पुनर्जन्म की बातें करता है। जीवन की गति प्रगति का रहस्य जानने को वह सदा से उत्सुक रहा है । चिन्तन की यह उत्सुकता मनुष्य को. ज्ञान-विज्ञान और अध्यात्म के क्षेत्र में आगे बढ़ाती है । I भारत के ऋषि-मुनि चिन्तनशील, मननशील तो रहे हैं पर साथ ही आत्म- दृष्टा भी रहे हैं । जो सिर्फ जीव और जगत के विषय में सोचता है, वह दार्शनिक होता है, किंतु जो अपने विषय में भी सोचता है, वह 'आध्यात्मिक' होता है । भारत का दार्शनिक सिर्फ दार्शनिक नहीं, किंतु 'आध्यात्मिक' भी रहा है । वह संसार के विषय में सोचता हुआ अपने विषय में भी सोचता है ! संसार में कोई मनुष्य सुखी है, बुद्धिमान है, सुन्दर है, और सर्वत्र उसका सम्मान होता है, तो कोई मनुष्य दुखी हैं, निरा बुद्ध है, दीखने में भी कुरूप है, पद-पद पर उसे अपमान और असफलता का सामना करना पड़ता है - यह सब भेद क्यों है, किस कारण है ? इस तथ्य पर जब चिन्तन किया जाता है तो मनुष्य की 'आत्मा' सामने आती हैं । कर्म, पर विचार आता है । जिस आत्मा ने जैसा कर्म किया है, पुण्य या पाप, शुभ या अशुभ जैसा आचरण किया है, उसी के अनुसार जीवन में उसके परिणाम या फल मिलते हैं । जैसा बीज बोया जाता है उसी प्रकार का फल भी लगता है । 1
SR No.002473
Book TitleAmardeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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