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जीवन : एक संग्राम ८३ शल (ज्ञानरहित) परम्परा के धागे से चिपटे रहने के कारण सम्यकमार्ग प्राप्त करके भी आगे (लक्ष्य) तक बढ़ नहीं पाते ७।
वे दूसरे को नवीन विचारधारा के आधार पर पक्षी की तरह आकाश में स्वतन्त्र उड़ान भरते देखते हैं, किन्तु अपने आपको परम्परा की रस्सी से बंधा पाते हैं । आशय यह है कि सम्यग्दृष्टि आत्मा मुक्ति की ओर जाने वाले महापुरुषों को देखता है, तब उसके मन में बन्धन की कठोरता अखरती है ।।
धृतिमान दमितेन्द्रिय निरंगण साधु अनेकविध नियमों के सम्बन्ध में सूत्र मात्र गति का अवलम्बन लेता है ।।
____ स्वच्छन्दमति-गति से घूमने वाली आत्माएँ कर्मसन्तति से सम्बद्ध होकर विविध भवों में भ्रमण करती हैं ।१०।।
जो अपने को मुक्त मानता है, किन्तु कर्मशृंखलाओं से प्रतिबद्ध होकर पलायन करता है। यह वदतोव्याघात हुआ । उग्रतपा वल्कलचीरी भगवान संसार के दावानल से सर्वथा विरत हो गए थे ।११।
इस प्रकार आध्यात्मिक जीवन संग्राम को हर पहलू से हृदयंगम करके विजय प्राप्त करना चाहिए।