SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ | तीसरा पाल : सत्वानुकम्पा : जीवदया। ___ मानवरूपी वृक्ष के छह फलों की व्याख्या चल रही है। जिसमें आचार्य सोमप्रभसूरि ने तीसरे फल का वर्णन करते हुए कहा है। तीसरा फल 'सत्त्वानुकम्पा' है। सत्त्व + अनुकम्पा, अनुकम्पन-प्राण, भूत, जीव और सत्त्व। प्राण प्राण का अर्थ-प्राण एक शक्ति है, जिसके संयोग से प्राणी जीवित रहता है और जिसके वियोग से प्राणी मर जाता है। प्राण-शक्ति से जीवन रहता है और प्राणों का घात होने से मरण होता है। प्राण-शक्ति प्रत्येक जीव में रहती है। प्राण के भेद-प्राण-शक्ति के दो भेद हैं-द्रव्य प्राण और भाव प्राण। जिसका अतिपात (विघात) हो सके, वह द्रव्य प्राण है। जिसका अतिपात न हो सके, वह भाव प्राण होता है। अब यहाँ पर एक प्रश्न हो सकता है-द्रव्य प्राण कौन-से हैं और भाव प्राण कौन-से हैं ? इसका समाधान इस प्रकार है द्रव्य प्राण-द्रव्य प्राण दस हैं-पाँच इन्द्रियाँ (श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय), तीन योग (मन, वचन, काय), तथा श्वासोच्छ्वास और आयुष्य। ऐसे ये दस द्रव्य प्राण हैं। भाव प्राण-भाव प्राण के चार भेद हैं-ज्ञान, दर्शन, चारित्र और वीर्य . (आत्म-शक्ति)। ___ भूत में वनस्पति है। वनस्पति क्या है ? जैसे-कंद, मूल, फल, फूल, बीज, हरी और अंकुर, कणक, कपास, नीलण-फूलण आदि वनस्पति हैं। यद्यपि भूत शब्द के अनेक अर्थ हैं-वाणव्यन्तरों की एक विशेष जाति को भूत कहा जाता है। वनस्पतिकाय के लिए भी भूत शब्द का प्रयोग किया जाता है। तथापि इस प्रसंग में भूत शब्द का प्रयोग सभी संसारी जीवों के लिए रूढ़ है। अर्थात् तीनों काल में रहने के कारण भूत है।
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy