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________________ * पद्म-पुष्प की अमर सौरभ * के होते हुए भी अपने-अपने विषय के अनुभवी विशेषज्ञों का महत्त्व रहता ही है। अनुभवी विशेषज्ञ से थोड़े ही समय में विशेष जानकारी प्राप्त हो सकती है। अतः गुरु-सेवा का अस्तित्व रहेगा ही। - जैनाचार्यों ने ‘णीरय' (नीरज) शब्द दिया है, जिसके दो अर्थ हैं-कमल और निर्मल। गुरु-चरण को कमल की उपमा दी गई है। जैसे “जहा पोमं जले जायं, नोवलिप्पइ वारिणा।" -कमल जल में उत्पन्न होता है, फिर भी कमल जल एवं कीचड़ से निर्लिप्त होता है। ऐसे ही गुरु भी कामभोगों एवं विषय-विकारों से निर्लिप्त होते हैं। दूसरी उपमा निर्मल की दी है, परन्तु गुरु-चरण नीरज = रज से रहित, निर्मल इसलिए हैं कि उन चरणों की उपासना जीवों को कर्मरूपी रज से रहित बनाती है। ज्ञान-प्राप्ति के लिए गुरु की पर्युपासना जैसे दीपक से दीपक जलता है, वैसे ही गुरुदेव विनीत शिष्य के हृदय में स्थिर ज्ञान-ज्योति को सँजो देते हैं। पर्युपास्ति में तीन शब्द हैं-परि + उप + अस्ति = पर्युपास्ति। ‘परि' का अर्थ है-चारों ओर से, 'उप' का अर्थ है-समीप, ‘अस्ति' का अर्थ है-रहना। गुरु के समीप रहना ही गुरु-पर्युपास्ति है। विनीत शिष्य का हृदय ही ज्ञान की किरण को पाने के लिए योग्य पात्र होता है। सद्गुरु ज्ञान योग्य पात्र को पाकर उसमें उसे रखने के लिए उत्सुक हो जाते हैं। गुरुदेव के द्वारा प्रसन्नता से प्राप्त ज्ञान-ज्योति चिरकाल पर्यन्त स्थिर रहती है। विनय अर्थात् अहंकाररहित व्यवहार करना, गुरुदेव के दर्शन से प्रसन्न होना, हृदय में उनके प्रति बहुमान रखना, उनके सन्मुख रहना या उन्हें अपनी दाहिनी बाजू रखना, उनसे न अधिक दूर और न अधिक समीप रहना, उचित आसन से बैठना, अन्यमनस्क नहीं होना आदि। ___पंचांग झुकाकर वन्दन करना, तीन बार तिक्खुत्तो के पाठ से वन्दन करना, उचित शब्दों में नम्रतापूर्वक जिज्ञासा अभिव्यक्त करना, यथासमय यथायोग्य प्रश्न करना, ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् हर्ष व्यक्त करना आदि। तीन पर्युपासनाएँ करनी चाहिए (१) मानसिकी पर्युपासना-धर्मानुराग से युक्त गुरुजन के प्रति भक्तिभाव और उनके द्वारा बतलाये जाने वाले विषय में प्रीति सहित रुचि रखना।
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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