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________________ * दूसरा फल : गुरु-पर्युपास्ति : गुरु-सेवा * * ८१ * “गुरौभक्तिर्गुरीभक्तिर्गुरौभक्तिः सदाऽस्तु मे। . चारित्रमेव संसार-वारणं मोक्षकारणम्॥" -मेरे हृदय में गुरु के प्रति भक्ति सदा ही बनी रहे, सदा ही बनी रहे। क्योंकि उनके प्रताप और प्रसाद से ही भव्य जीवों के हृदय में चारित्र का भाव जाग्रत होता है और यह चारित्र ही संसार का निवारण करने वाला है और मोक्ष का कारण है। लोग कहते हैं कि अरिहन्त, सिद्ध बड़े हैं, ब्रह्मा, विष्णु और महेश बड़े हैं। परन्तु उनका यह बड़प्पन किसने बताया? क्या हमने उनको देखा है या उनसे बातचीत की है ? उनके गुणों को किसने बताया ? अरिहन्त और सिद्ध की पहचान किसने बतलायी? पंच परमेष्ठियों के गुण किसने बतलाये? सबका उत्तर यही है कि गुरु के प्रसाद से ही यह सब जानकारी प्राप्त हुई है। यदि गुरु न होते तो संसार में सर्वत्र अन्धकार ही. दृष्टिगोचर होता। इसलिए सबसे बड़ा पद गुरु का है। इसी कारण ‘दशवैकालिकसूत्र' में कहा है “जस्संतिए धम्मपयाइं सिक्खे तस्संतिए वेणइयं पउंजे। सक्कारए सिरसा णं पंचएण काएण वाया मणसावि णिच्चं॥" अर्थात् जिसके समीप धर्म के पदों को सीखे उसका सदा विनय करना चाहिए, उसको पंचांग नमस्कार करें और मन, वचन, काया से उसका नित्य सत्कार करें। तीर्थंकर जैसे महापुरुष भी पूर्व-भव में गुरु के प्रसाद से दर्शन-विशुद्धि आदि बीस बोलों की आराधना करके तीर्थंकर नामगोत्र का बन्ध करते हैं। पुनः तीर्थंकर बनकर जगत् का उद्धार करते हुए मोक्ष को प्राप्त करते हैं। यह सब गुरु-भक्ति का प्रसाद है। गुरु के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं होता है। क्योंकि किसी कवि ने भी कहा है “गुरु बिन ज्ञान न होवे भाई, ऋषियों ने यही बात सुनाई। गुरु जगत् हितकार गुरु के -प्रत्येक साधक को गुरु के प्रति असीम श्रद्धा और भक्ति का भाव रखना चाहिए। क्योंकि साधक पर सद्गुरु का इतना विशाल ऋण है कि उसका बदला नहीं चुकाया जा सकता। गुरु की महत्ता अपार है। अतः प्रत्येक धर्म-साधना के प्रारम्भ में सद्गुरु को श्रद्धा-भक्ति के साथ अभिनन्दन करना चाहिए। आत्म-साधना के ज्ञान को गुरु ही प्रदान कर सकता है, आगम ज्ञान के स्वामी सद्गुरु होते हैं, सद्गुरु की चरणोपासना ही सम्यग्ज्ञान प्रदान कर सकती है। सद्गुरु से विमुख ज्ञान विमुख ही रहता है। संसार में स्वयं दक्ष बने हुए व्यक्तियों
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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