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पद्म-पुष्प की अमर सौरभ *
सुघड़ प्रतिमा का रूप देकर उसकी गौरव गरिमा में अभिवृद्धि करता है। किसी कवि ने भी कहा है
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"गुरु कारीगर सारिखा, टांची वचन विचार | पत्थर से प्रतिमा करे, पूजा लहै अपार ॥"
- कलाकार जैसे एक अनघड़ पत्थर को ऐसी सुन्दर आकृति प्रदान करता है जिसे देखते ही दर्शक आनन्द-विभोर हो जाता है, वैसे ही सद्गुरु भी असंस्कारी आत्मा को ऐसी संस्कारी बना देता है । गुरु को नमस्कार करते हुए कहा है
“अज्ञानतिमिरान्धाना, ज्ञानांजनशल्पक्या । चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥"
अर्थात् अज्ञानरूपी अन्धकार से जो अन्धे बने हैं, जिनके नेत्र बन्द हैं, उन्हें (उनके नेत्रों को ) जो ज्ञान के सुरमे की शलाका से खोल देते हैं, अज्ञान के अन्धकार को ज्ञान से मिटा देते हैं, वैसे गुरु को हमारा नमस्कार है । 'भागवत् पुराण' में महर्षि दत्तात्रेय का वर्णन आता है कि महर्षि दत्तात्रेय ने २४ गुरु किये। जैसे- पृथ्वी, जल, आकाश आदि जहाँ से उनको गुण प्राप्त हुए, उसी को उन्होंने गुरु मान लिया। गुरु वही है, जो हमको रास्ता बताये । इसलिए गुरु का स्था सबसे महान् तथा ऊँचा है। महात्मा कबीरदास अपने शब्दों में कह रहे हैं
"कबीर ते नर अन्ध हैं गुरु को कहते और । हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर ॥"
-यदि भगवान रुष्ट हो जाये तो सद्गुरु बचा सकता है, किन्तु सद्गुरु रुष्ट हो जाये तो भगवान की भी शक्ति नहीं जो उसे उबार सके ।
गुरु महिमा
'व्याकरणशास्त्र' के अनुसार स्वर दो प्रकार के हैं - ह्रस्व और दीर्घ । ह्रस्व स्वर - अ, इ, उ इत्यादि । दीर्घ स्वर - आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ । दीर्घ स्वर को गुरु कहते हैं ।
.' ज्योतिषशास्त्र' के अनुसार नौ प्रकार के ग्रह हैं - सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुद्ध, वृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु । नौ प्रकार के ग्रहों में पाँचवाँ जो ग्रह है वह वृहस्पति ग्रह है । जिसे गुरुग्रह की संज्ञा दी जाती है । गुरु की महिमा गाते हुए संस्कृत विद्वान् ने कहा है