________________
* दूसरा फल : गुरु-पर्युपास्ति : गुरु-सेवा *
* ७७ * के लिए हाथी, घोड़े और कारें हैं। मौज-मेला मनाने के लिए जिनके पास. तिजौरियाँ भरी पड़ी हैं। क्या वस्तुतः वे गुरु हैं? क्या वास्तव में वे गुरु कहलाने के अधिकारी हैं ? नहीं। ऐसे ऐशोआराम में फँसने वाले गुरु नहीं कहला सकते। वास्तव में गुरु कहलाने के अधिकारी तो वे हैं, जो जर-जोरू-जमीन के त्यागी, इच्छाओं, आकांक्षाओं, वांछाओं, वासनाओं से दूर केवल प्रभु-चिन्तन में, आत्म-दर्शन में लीन हैं, वे गुरु कहलाते हैं। गुरु मार्गदर्शक
आज के भौतिक युग की चकाचौंध में फँसे हुए मानवों के मानस में धार्मिक संस्कार द्वारा संसार-समुद्र से पार करने वाले हैं और धार्मिक संस्कार भरने का अथक प्रयत्न करते हैं गुरु। जब कभी भी भौतिकता में फँसा हुआ यह आत्मा आत्मिक सुखों को भूलकर भौतिक सुखों को सुख मानकर उसी में ही निद्रालीन हो जाता है, तब गुरु ही उसे जाग्रत करके आत्मिक सुखों की ओर अग्रसर करते हैं, वे ही गुरु होते हैं।
“न विना यान पात्रेण तरितुं शक्यतेऽर्णवः।
नर्ते गुरूपदेशाच्च सुतरोऽयं भवार्णवः॥" -आदिपुराण -जैसे जहाज के बिना समुद्र को पार नहीं किया जा सकता, वैसे ही गुरु के मार्गदर्शन के बिना संसार-सागर का पार करना अत्यन्त कठिन है।
- मनुष्य के जीवन में सद्गुरु की प्राप्ति होना एक महान् उपलब्धि है। गुरु एक ऐसी आध्यात्मिक शक्ति है, जो मनुष्य को नर से नारायण, जन से जिन और आत्मा को परमात्मा बना देती है। इन्सान से भगवान बना देती है। ‘योगवाशिष्ठ' में कहा है
"गुरूपदेशेन विना नात्मगमो भवेत्।" ___-गुरु के उपदेश बिना आत्म-तत्त्व का ज्ञान नहीं होता। अध्यात्म-साधना के क्षेत्र में गुरु का पद सबसे ऊँचा है। कोई दूसरा पद इसकी समानता नहीं कर सकता। गुरु जीवन नौका का नाविक है, संसार के काम, क्रोध, मान, माया एवं लोभ आदि भयंकर आवों में से वह हमको सकुशल पार ले जाता है। भारतीय संस्कृति की अध्यात्म-साधना में इसी कारण से गुरु को मार्गदर्शक कहा गया है।
सद्गुरु श्रेष्ठ कलाकार
सद्गुरु जीवन का एक श्रेष्ठ कलाकार है, जो जीवनरूपी अनघड़ पत्थर को