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| * प्रथम फल : जिनेन्द्र पूजा *
* ७५ * अर्थात् जिससे जीव राग से विमुख होता है, श्रेय में अनुरक्त होता है एवं जिससे प्राणी जगत् के प्रति मैत्रीभाव बढ़ता है, उसी को जिन-शासन में ज्ञान कहा है। इस कसौटी पर परखकर आप स्वयं निर्णय कर सकते हैं कि ज्ञान का कितना बड़ा महत्त्व है। ज्ञान अचूक अस्त्र है। .
ज्ञान आत्मा की किरण है, ज्ञान आत्मा का निजत्व गुण है। यह सदैव हमारे पास विद्यमान है, केवल उसे प्रगटाने की, आवरण को हटाकर उसके ज्योतिर्मय स्वरूप को देखने की आवश्यकता है। यह ज्ञान केवल शास्त्रों के अध्ययन में नहीं है, विविध प्रकार की वेश-भूषा धारण करनी भी नहीं है। कोई नाना प्रकार से काव्यकला दिखाकर अपने आप को ज्ञानी सिद्ध करना चाहता है तो कोई गाने-बजाने में निपुणता दिखाकर। ये सब सांसारिक चातुर्य को प्रकट करने वाले करतब (खेल) मात्र हैं, वास्तविक ज्ञान तो कस्तूरी मृग की कस्तूरी के समान सदैव हमारे साथ ही है, उसे प्रकट करना आवश्यक है। इसे प्रगटाने के लिए भी दूसरा कोई हमारा सहायक नहीं होगा, हमें स्वयं ही पुरुषार्थ करना होगा। इसलिए पाश्चात्य विद्वान यंग ने कहा है-बादल चाहे पदवियाँ और जागीरें बरसा दे, दौलत चाहे हमें ढूँढ़े, लेकिन ज्ञान को तो हमें ही खोजना होगा। अतः ज्ञान-प्राप्ति में हम स्वयं प्रयत्नवान बनें तभी हमारे लिए मानव-जीवन प्राप्त करने की सार्थकता है।