________________
प्रथम फल : जिनेन्द्र पूजा
" किं परमं विज्ञानं ? स्वकीय गुणदोष विज्ञानम् ? "
- उत्कृष्ट विज्ञान क्या है ? विज्ञान का अर्थ है विशेष ज्ञान । अपने दोष - गुण को जान लेना ही विज्ञान है।
'गीता' में श्रीकृष्ण ने कहा है
७३ *
" नहि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमहि विद्यते । "
- इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र और कुछ नहीं है। 'शंकरभाष्य' में कहा है
" सम्यग्दर्शनात् क्षियं मोक्षो भवति । "
—यथार्थ ज्ञान प्राप्त होने पर शीघ्र ही मोक्ष प्राप्त हो जाता है । 'ज्ञानार्णव' में आचार्य शुभचन्द्र जी ने कहा है
“दुरित तिमिर हंसं मोक्ष लक्ष्मी - सरोजं, मदन- भुजंग मंत्रं चित्त-मातंग सिंहं ।
व्यसन घन समीरं विश्वतत्वैक दीप, विषय- शफर जालं ज्ञानमाराधय त्वं॥”
- हे भव्य आत्मा ! ज्ञान का आराधन कर, ज्ञान पापरूपी तिमिर ( अन्धेरे) को नष्ट करने के लिए सूर्य के तुल्य है। मोक्षरूपी लक्ष्मी के निवास के लिए कमल के समान है। कामरूपी सर्प को कीलने ( वश में करने) के लिए मंत्र के समान है। व्यसन (आपदा) रूपी मेघों को उड़ाने के लिए पवन (वायु) के समान है । समस्त तत्त्वों को प्रकाशित करने के लिए दीपक के समान है। विषयरूपी मत्स्यों को पकड़ने के लिए जाल के समान है।
" तमो धुनीते कुरुते प्रकाशं, शमं विधत्ते विनिहन्ति कोपम् । तनोति धर्मं विधुनोति पापं, ज्ञानं न किं किं कुरुते नराणाम् ॥”
अर्थात् ज्ञान के प्रभाव से मनुष्यों को क्या-क्या सद्गुण नहीं प्राप्त होते। वह आन्तरिक अन्धकार को नष्ट करता है और आत्मा को अलौकिक आलोक से आलोकित कर देता है । सम्यग्ज्ञान से जीव क्रोधादि कषायों पर विजय प्राप्त करके प्रशम भाव को प्राप्त करता है। वह पाप विनाशक है और धर्म का विस्तारक है । आगे भी कहा है
"क्षेत्रे प्रकाशं नियते करोति, रविर्दिनेऽस्तं पुनरेतिरात्रौ । ज्ञानं त्रिलोके सकले प्रकाशं, करोति नाच्छादनमस्ति किंचित् ॥”