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* पद्म-पुष्प की अमर सौरभ *
हमने बारह प्रकार के तपों की बहुत सुन्दर व बुद्धि के आधार पर विस्तृत चर्चा कर ली है। हम पूजा की चर्चा कर रहे हैं जिसमें पूजा के आठ फूलों की चर्चा कर रहे हैं। पूजा का सातवाँ फूल है - तप । पीछे • हम सातवें फूल - तप की विस्तृत चर्चा कर चुके | अब हम आठवें फूल - ज्ञान की चर्चा करेंगे।
८. ज्ञान
ज्ञान क्या है ?
"ज्ञायते अनेन इति ज्ञानम्।”
- जिसके द्वारा जाना जाय, वह ज्ञान है। ज्ञान का अर्थ है - जानकारी । भगवान महावीर स्वामी ने ‘दशवैकालिकसूत्र' में फरमाया है
“पढमं नाणं तओ दया ।"
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- पहले ज्ञान है फिर आचरण है। जब तक हम जानते ही नहीं तो धर्म क्या है, अधर्म क्या है, पाप क्या है, पुण्य क्या है, इसको हम कैसे जान पायेंगे ? पहले जानकारी जरूरी है। बिना जानकारी के यह अमृत है, विष है, इसका पता नहीं चलेगा। यदि जानकारी है तो अमृत को, विष को जान लेना ।
"न ज्ञानात् परं चक्षुः ।"
भौतिक पदार्थों के और आध्यात्मिक तत्त्वों के स्वरूप को समझने के लिए ज्ञान के समान दूसरा कोई नेत्र नहीं है ।
“ज्ञानं मनः पावनम्।”
- ज्ञान मन के समस्त विकारों को नष्ट करके उसे शुद्ध और पवित्र बनाता है। "ज्ञानं सर्वार्थसाधकम् ।" "
- सभी प्रकार के पदार्थों की प्राप्ति में ज्ञान ही साधक है।
'गीता' में श्रीकृष्ण अर्जुन को सम्बोधित करते हुए कहते हैं“ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन ।”
- हे अर्जुन ! जैसे प्रज्वलित अग्नि लकड़ियों के समूह को क्षण में ही भस्म कर देती है। ऐसे ही ज्ञानाग्नि के द्वारा प्राचीन काल के बँधे हुए अशुभ कर्मों को दूर किया जा सकता है। ज्ञान के बिना न हम जान सकते हैं, न देख सकते हैं, न सूँघ, न चख और न स्वाद ही ले सकते हैं। बिना ज्ञान के पाँचों इन्द्रियों का अनुभव भी नहीं कर सकते हैं । यहाँ पर एक प्रश्न उपस्थित होता है